Saturday, 27 August 2016

उदयपुर का अद्भुत वैधनाथ मंदिर

उदयपुर का अद्भुत वैधनाथ मंदिर 

उदयपुर की पिछोला झील के पश्चिम में स्थित सीसारमा गाँव में वैधनाथ मंदिर स्थित है इसका निर्माण महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय १७१०-१७३४ ने करवाया था| मात्रभक्त महाराणा ने अपनी माता देवकुवरी जो की बेदला के राव सबल सिंह की पुत्री थी के कहने पर इस मंदिर का निर्माण करवाया था इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार मंदिर की प्रतिष्ठा गुरुवार,विक्रम संवत १७७२ माघ सुदी 14 को , १६ जनवरी १७१६ में हुई थी| इस अवसर पर राज माता ने चोथी बार चांदी का तुलादान किया था हालाकि मंदीर में लगे सुचना पट के अनुसार स्वर्ण तुलादान किया गया था| इस मंदिर के निर्माण में और प्रतिष्ठा में महाराणा ने लाखो रुपियो का व्यय किया था| इस अवसर पर कोटा के महाराजा भीम सिंह जी और डूंगरपुर के महारावल राम सिंह भी उपस्थित थे| उदयपुर के इतिहास को जानने के लिए इस मंदिर में लगे दो शीला लेख अत्यंत उपयोगी है|इस प्रशस्ति में १३६ श्लोक और २ प्रकरण है इसमें राणा राहप से महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय तक का उल्लेख किया गया है तथा राजमाता देव कुंवरी जी के परिवार का भी संक्षिप्त परिचय दिया गया है|इस मंदिर के अलावा महाराणा ने दक्षिणामूर्ति ब्रम्हचारी के कहने पर पिछोला के पूर्व में दक्षीणामूर्ति का मंदिर , देलवाडा की हवेली के पास शीतला माता का मंदिर ,उदयपुर से १६ मील दूर नाहर मगरे पर महल, उदय सागर के महलो में चीनी की चित्रशाला का ,जगमंदिर में नहर के महल व दोनों दरिखाने, महासतिया में अपने पिता अमरसिंह द्वितीय की विशाल छतरी ,सहेलियों की बाड़ी का और सिटी पैलेस में त्रिपोलिया और हाथियों की अगड का निर्माण करवाया था|

मुख्य द्वार के दोनों तरफ लम्बे से बरामदे बने हुवे है जो शायद उस काल में बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों के काम आते होंगे| मुख्य मंदिर के अन्दर दायी तरफ एक छोटा सा कुंड बना हुवा है|शिव पंचायतन शैली में बने इस मंदिर के चारो तरफ छोटे छोटे चार मंदिर बने हुवे है बायीं तरफ दो छोटे छोटे मंदिर बने हुवे है जिसमे एक में गणपति की तीन मुर्तिया विराजमान है दूसरा मंदिरे मंदिर में शायद ब्रम्हाजी की मूर्ति विराजित है| मंदिर के दायी तरफ कुंड के आगे एक बजरंगबली का मंदिर है और कुंड के आगे विशाल तोरण द्वार बना हुवा है| मुख्य मंदिर के सामने चार खम्बो की छतरी के अन्दर नंदी विराज मान है जो संभवत नए है पुराने नंदी की खंडित मुर्तिया मंदिर के पिछवाड़े में रखी हुई है| नंदी के पीछे ही पाषाण पर उत्कीर्ण दो शीला लेख लगे हुवे है जिनके बारे में मैंने ऊपर लिखा है| हर्ष का विषय ये है की ये शिलालेख आज भी पूरी तरह से सुरक्षित है और आसानी से पढ़े जा सकते है मानो के उन्हें हाल ही में लगाया हो |चुकी मै ऐसे समय गया था जब मुख्य मंदिर पर ताला लगा हुवा था इसलिए मै गुम्बद के अन्दर की नक्काशी और गर्भ गृह के अन्दर रखी मूर्ति के दर्शन लाभ तो नहीं ले सका इसलिए उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता पाऊंगा| किन्तु शिव पंचायतन शैली में बने इस मंदिर के मुख्य मंदिर के गुम्बद के बाहर उकेरी गई शिव के विभिन्न रूपों की मूर्तिकला के नमूने बेजोड़ है उन्हें आप मेरे खिचे गए फोटोग्राफ्स में देख सकते है| मंदिर विन्यास और शिल्प के बारे में मै ज्यादा नहीं जानता हु मगर इस भव्य मंदिर को देख कर इतना तो जरुर अहसास हो जाता है की ये मंदिर शिल्प कला की बेमिसाल कृति है| 

 जय जय................ शरद व्यास, ०२-०८-१६ उदयपुर|
























3 comments:

  1. नए ब्लॉग की शुभकामनाएँ, ब्लॉगिंग के भंवरकूप में आपका हार्दिक स्वागत है। आशा है आप अपने सारगर्भित लेखन से ब्लॉग जगत को समृद्ध करेंगे।

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  2. धन्यवाद गुरुदेव

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