Tuesday, 20 September 2016

नागदा -Nagda - Udaipur

उदयपुर से एकलिंग जी के मंदिर की तरफ जाते हुवे थोडा पहले बाघेला तालाब के घाट के पास में एक रास्ता जाता है जो नागदा की तरफ जाता है |नागदा को मंदिरों की नगरी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी | नागदा मेवाड़ के गुहिल वंशी राजाओं की प्राचीन राजधानी रहा है | संस्कृत शिलालेखो में इसका नाम नागहद या नागद्रह लिखा है प्राचीन काल में ये बहोत सम्रधशाली और प्रमुख नगरी थी जिसने अनेक आक्रमण झेले है जिसमे सबसे प्रमुख सुलतान शमसुद्दीन इल्तुतमिश का आक्रमण था (इसवी संवत १२२२ से १२२९ के मध्य) कहते है की तत्कालीन मेवाड़ के शासक जैतसिंह ने सुलतान को परास्त किया था | गुहिल वंशी राजा अपराजित जो की इसवी संवत ६६१ में हुवे का एक शीलालेख जो नागदा के पास कुंडेश्वर मंदिर से प्राप्त हुवा था को प्रसिद्द इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने गुलाब बाग़ के विक्टोरिया हाल में रखवाया था | कहा जाता है की नागदा में जहा वर्तमान में बाघेला तालाब है वहा भी इस नगर का विस्तार था किन्तु महाराणा मोकल के अपने भाई बाघ सिंह के नाम से बाघेला तालाब बनवाने से उक्त क्षेत्र डूब गया| नागदा के प्रमुख मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध मंदिर सास बहु के मंदिर है जो की वर्तमान में पुरातत्व विभाग के अधीन है | कुछ लोग कहते है की इन मंदिरों का वास्तविक नाम सहस्त्रबाहू था जो की अपभ्रंश होकर सहस बाहू हो गया और बाद में सास बाहू कहलाने लगा|इन मंदिरों की सुन्दरता देखते ही बनती है सास का मंदिर के चारो तरफ बनाई हुई मुर्तिया की नक्काशी लाजवाब है | बड़ा दुःख होता है ये जानकार की इन मंदिरों रंग मंडपों के अन्दर बनी हुई नर्तकियो की मूर्तियों को और गर्भ गृह के अन्दर रखी विष्णु भगवान् की प्रमुख मुर्तिया और नागदा के अनेक मंदिरों में से मुर्तिया चोरी की जा चुकी है इन बेशकीमती प्राचीन मूर्तियों की चोरी करने वाले इस कलियुग में अनेक वामन अवतार है जिन्होंने अपने कुछ ही कदमो से और स्थानीय मंदिर के भक्षको की सहायता से सभी मंदिरों को नाप लिया है|वर्तमान में पुरातत्व विभाग की तरफ से नियुक्त मंदिर के केयर टेकर श्री किशन लाल मीना जी से मंदिरों के बारे में काफी कुछ जानकारी मिल जाती है |मंदिर की वास्तुकला और विज्ञान के सम्बन्ध में अपना ज्ञान तो शून्य है किन्तु मंदिर के बाहर लिखे सुचना पट के अनुसार ये मंदिर ग्यारहवी शताब्दी में बने हुवे है और ये पंचायतन शैली में बने हुवे है जिसमे मुख्य मंदिर चारो तरफ से देव कुलिकाओ से घिरा हुवा है प्रत्येक मंदिर पंचरथ गर्भगृह, अंतराल पार्श्वलिंद युक्त रंग मंडप, सभा मंडप और अर्थ मंडप युक्त है भाद्ररथ में ब्रम्हा ,विष्णु और शिव की आकृतिया है जो क्रमश राम बलराम और परशुराम की मूर्तियों से आच्छादित है मंडप का बाहरी और अंदरी भाग, स्तम्भ, प्रस्तारवाद एवं द्वार प्रचुर रूप से अलंकृत है | मुख्य मंदिर के मंडप में स्थित मकरतोरण मध्यकालीन पश्चिम भारत के शिल्प की मुख्य विशेषता है सास बहु के मंदिर के पास ही एक विशाल जैन मंदिर था जिसे खुमान रावल का देवरा कहते थे जिसमे खुदाई का बेहतरीन काम है और पास में एक अन्य मंदिर है जिसमे ६ फूट की शांतिनाथ भगवान् की बैठी हुई मूर्ति है जिसका नाम अद्भुत जी का मंदिर है| कहा जाता है की महाराणा कुम्भा के राज्य काल में १४३७ में ओसवाल सारंग ने वह मूर्ति बनवाई थी| वर्तमान में जैन समाज ने इन मंदिरों के जीर्णोद्धार का कार्य हाथ में ले लिया है और इन मंदिरों को और विशाल स्वरुप दिया जा रहा है|सास बहु के मंदिर से पहले तालाब में स्थित छोटे से मंदिर जो हमेशा आधे पानी में डूबे हुवे रहते है की सुन्दरता देखते ही बनती है| बाघेला तालाब के बाँध के पीछे की तरफ जो सड़क नागदा के मंदिर की तरफ जा रही है वहा सड़क के दूसरी तरफ तालाब में असंख्य कमल है और दोनों तालाबो के मध्य जो सड़क या पुल को देख कर बड़ा दुःख होता है की उसकी चुनाई में प्राचीन मंदिरों के प्रस्तर खंडो का प्रयोग किया हुवा है और सबसे बड़ी हैरानी तो तब हुई जब बाघेला तालाब में एक प्राचीन मंदिर के अवशेष देखे जिनमे से कुछ पर तो वहा के स्थानीय निवासी कपडे धो रहे थे जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया की यहाँ एक प्राचीन मंदिर था जो शायद १५ या २० सालो पहले जलस्तर बढ़ने से ढेह गया फिर उन्होंने मंदिर के शिवलिंग की प्रमुख मूर्ति तालाब के एक कोने पड़ी दिखाई और बताया की जल स्तर कम होने के कारण ही भगवान् के दर्शन हो रहे है अन्यथा वो भी नहीं होते| नागदा में अनेक खेतो की पालो मेड़ो में प्राचीन मंदिरों के प्रस्तर खंड लगे हुवे दिखाई दे जाते है |वाकई में नागदा की पूरी भूमि प्राचीन इतिहास के अवशेषों से भरी पड़ी है| इसी प्रकार जैन मंदिरों के पास में एक जीर्ण शीर्ण देवरा है जिसमे विशाल शिवलिंग की भग्न प्रतिमा विराजित है और इसी प्रकार दो अन्य मंदिर जो की नीमच माता और खीमज माता मंदिर के नीचे और बाघेला तालाब के मोड़ पर पत्थरों के ऊँचे चबूतरे पर बने हुवे है जो की बिलकुल जीर्ण शीर्ण अवस्था में है और उनमे से बड़े मंदिर का एक स्तम्भ कभी भी गिर सकता है जिसके गिरने से पूरा मंदिर ढह सकता है| पास में एक ढहे मंदिर के निशाँ भी नजर आते है ये सभी मंदिर महाराणा आव मेवाड़ चैरीटेबल फाउंडेशन के अधीन है जिनसे निवेदन है की उक्त मंदिरों की तत्काल मर्रम्मत करवाए| मित्रो नागदा में एक दिन गुजारने के बाद बस एक ये विचार मन में आता है की काश कोई जादू की छड़ी या टाइम मशीन हो जो हमें उस प्राचीन युग में ले जाय और हम इस भव्य ऐतिहासिक नगरी को देख पाये।
https://youtu.be/mTYY9rgij4c
 



























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