Friday, 23 September 2016

गोवर्धन विलास महल

उदयपुर से अहमदाबाद जाने वाले हाईवे पर गोवर्धन विलास तालाब से कुछ मीटर पहले बायीं और गली के अन्दर गोवर्धन विलास महल स्थित है | इन महलो का निर्माण महाराणा सरूपसिंह जी १८४२ -१८६१ ने करवाया था|कहते की अपने जीवन के अंतिम समय में पाँव सम्बन्धी रोग से ग्रसित हो जाने पर और चलने फिरने से भी दुर्भर हो जाने पर यही रहना प्रारम्भ कर दिया था और वे लगभग पांच महीने तक यही रहे थे और इन महलो में बनी हुई गौशाला में गायो की सेवा करते थे यहाँ उनके साथ उनकी पासवान एजनं बाई रहती थी और वो ही महाराणा की सेवा करती थी और एजनं बाई ही महाराणा का स्वर्गवास होने पर उनके साथ महासतिया में उनकी चिता में सती हुई थी|ध्यात्वय रहे की इन्ही महाराणा ने राजपूताने के एजेंट गवर्नर जनरल मेजर इडन के समझाने पर १५ अगस्त १८६१ को सती प्रथा और डाकन प्रथा और जीवित समाधि लेने पर रोक लगाईं थी| इसी कारण एजनं बाई मेवाड़ की अन्तिम सती थी|स्थानीय निवासी गोवर्धन विलास महल को एजनं बाई का महल ही कहते है|वर्तमान में इसके अन्दर भू प्रबंध विभाग का शिक्षा विभाग का कार्यालय संचालित है पूर्व में यहाँ पुलिस थाना और कई वर्ष पूर्व एस टी सी का प्रशिक्षण संस्थान था|इस महल की भव्यता देखते ही बनती है महल के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही दायी तरफ दरवाजे में अन्दर जाने पर एक चौक है जिसके मध्य एक सुन्दर सा कुंड बना हुवा है जिसके चारो तरफ फव्वारे लगे हुवे है जिसमे पानी की आवक चौक के एक तरफ बने कमरों के ऊपर बनी हुई पानी की टंकी से होती है| कुंड के सामने बने हुवे कक्षों की दीवारों में नीचे की तरफ मेवाड़ शैली के सुन्दर भित्ति चित्र उकेरे हुवे है जिनकी सुन्दरता देखते ही बनती है सरकारी उदासीनता और लापरवाही के कारण ये चित्र नष्ट हो रहे है और कक्षों के मध्य भाग में पशुओ का मल मूत्र बिखरा हुवा पड़ा है इन कक्षों के सामने एक हाल है जिसमे झरोखे युक्त दो खिडकिया निर्मित है|मुख्य महल में बाहरी भाग मर्दाने और अन्दर वाला भाग जनाने महल में विभक्त है जनाने महल के अन्दर भी दीवारों में भीती चित्र बने हुवे है और सिटी पैलेस के अन्दर मोर चौक में स्थित कांच जड़े मोर की तरह यहाँ भी कांच से जड़ा हुवा एक मोर बना हुवा है| महलो के अन्दर जाने पर ऊपर मगरी पर जिसे हवा मगरी कहते है हवादार झरोखे युक्त कक्ष बने हुवे है स्थानीय निवासियों के अनुसार यहाँ पर बैठ कर महाराणा नीचे मैदान में होने वाली हाथियों की लड़ाई देखा करते थे |महल के बाहर थोडा नीचे की तरफ एक बावड़ी बनी हुई है जो वर्तमान में चारो तरफ हुवे निर्माण से छुप गई है उसके आगे बने हुवे सामुदायिक केंद्र के अन्दर से जाने का रास्ता है |महाराणा ने गोवर्धन विलास महल के अलावा गोवर्धन विलास तालाब, पशुपतेश्वर मंदिर, स्वरुप बिहारी मंदिर, जगत शिरोमणी मंदिर और जवान सूरज बिहारी ( बांकड़े बिहारी) के मंदिर बनवाये इसके अलावा महाराणा कुम्भा के चित्तोड़ के किले में बनवाये गए कीर्ति स्तम्भ पर बिजली गिर जाने से उसके ऊपर की छतरी क्षतिग्रस्त हो गई थी उसका किसी मंदिर के गुम्बज से उसकी मर्रम्मत करवाई| महाराणा की माताजी बीकानेरी जी ने पिछोला तालाब के किनारे जलनिवास तालाब के सामने हरिमंदिर बनवाया था| महाराणा सरूप सिंह जी ने ही स्वरुपशाही सिक्के चलाये थे| महाराणा के कोई पुत्र नहीं होने के कारण उन्होंने अपने भाई के पौत्र शम्भू सिंह को गोद लिया था और अपना उतराधिकारी नियुक्त किया |











No comments:

Post a Comment