सातबीस देवरी जैन मंदिर – चित्तौड़गढ़
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कुम्भा महल के आगे त्रिपोलिया दरवाजे
के अन्दर प्रवेश करते ही दाई तरफ स्थित है सातबीस देवरी जैन मंदिर | संभवत मंदिर में बनी कुल
27 देवरियो के कारण ही इसे सातबीस देवरी मंदिर कहा जाता है | इन मंदिरों में
अन्दर और बाहर की तरफ किया गया शिल्पांकन कमाल का है और आपको रणकपुर और माउंट आबू
के देलवाडा के मंदिरों की याद दिला देता है| मंदिर के मुख्य द्वार को देख कर आप इसकी
भव्यता और अन्दर स्थित अन्य दो मंदिरों और इतनी सारी देवरियो के होने का अंदाजा
नहीं लगा पाते है| मुख्य मंदिर तीन मंडप युक्त तथा पश्चिमाभिमुख है| मुख्य मंदिर के
उत्तर और दक्षिण में लघु मंदिर बने हुवे है तथा गलियारे में कोष्ठ देवकुलिकाए है
जो मुख्य मंदिर तथा प्रांगण को घेरे हुवे है| मुख्य मंदिर गर्भ
गृह, अंतराल, सभा मंडप, त्रिकमंडप एवं मुखमंडप युक्त है| मंदिर का जंघा
भाग देवी देवताओं एवं अप्सराओं की मूर्तियों से युक्त है| मुख्य मंदिर में
तथा गलियारे में स्थित देवरियो में कुल 47 पाषाण की मुर्तिया अवस्थित है तथा
सम्पूर्ण मंदिर में कुल 163 पाषाण के कलात्मक स्तम्भ स्थित है | मुख्य मंदिर में
मुलनायक आदिनाथ भगवान् की मूर्ति विराजित है तथा दाए बाए शान्तिनाथ जी और अजित नाथ
जी की प्रतिमाये विराजमान है| मुख्य मंदिर के पीछे दो पूर्वाभिमुख मंदिर अवस्थित है
जिनकी बाह दीवारों पर की गई मूर्तिकला अद्भुत है| डा ए.एल.जैन के
अनुसार उत्तर दिशा में स्थित पार्श्वनाथ जी के मंदिर का निर्माण इसवी सन 1448 में
भंडारी श्रेष्ठी संभवत वेला ने जिन्होंने चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित श्रृंगार चवरी
मंदिर का निर्माण करवाया था ने इस करवाया था| पश्चिम दिशा में
स्थित पार्श्वनाथ मंदिर का निर्माण तोलाशाह दोशी तथा उनके पुत्र कर्माशाह दोशी ने इसवी
सन 1530 में करवाया था|
मंदिर के बाहर लगी पुरातत्व विभाग के शिलालेख के अनुसार इस
मंदिर का निर्माण संभवत 1448 में हुवा था| अतुल्य जैन धर्म एवं गढ़ चित्तौडगढ के
लेखक डा ए.एल.जैन के अनुसार सातबीस देवरी का निर्माण इसवी सन 957 में प्रारंभ हुवा
और इसवी संवत 972 में पूरा हुवा था| डा ए.एल.जैन के अनुसार इस मंदिर का तथा चार अन्य मंदिरों
का करेडा(भूपाल सागर),पलाना (खेमली के पास), बगौर (नाथद्वारा से 3 किलोमीटर दूर)
तथा खाखड (उदयपुर-फलासिया के मार्ग में स्थित) का निर्माण सिमंदर शाह नामक ब्राह्मण व्यापारी ने
जैन आचार्य यशोभद्र सूरी की प्रेरणा से करवाया था| जिसने आचार्य
यशोभद्र की प्रेरणा से जैन धर्म अंगीकार कर लिया तथा तलेसरा गोत्र प्रदान की गई|
सिमंदर शाह को तलेसरा गोत्र प्रदान किये जाने के पीछे जनश्रुति
अनुसार रोचक तथ्य ये है की इस मंदिर का निर्माण करवाते समय सिमंदर शाह ने मंदिर के
निर्माण के समय इसकी नीव में चालीस हजार मन तेल डलवाया था| सिमंदर शाह को
गजधर नामक व्यक्ति ने सलाह दी थी की यदि मंदिर की नीव में तेल डाला जाएगा तो इसकी
आयु 1500 वर्ष से अधिक होगी|
नि:संदेह भारतीय इतिहास के लेखन में कालानुक्रम के निर्णय
तथा घटनाओं की प्रमाणिकता को सिद्ध करने में जैन ग्रन्थ के विशाल साहित्य भण्डार तथा जैन मंदिरो का योगदान अत्यंत
महत्वपूर्ण है|
तो अगली बार आप जब भी चित्तौड़ पधारे तो सातबीस देवरी मंदिर
अवश्य देखे |
जय जय .....शरद व्यास (29.10.17)
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