Monday, 30 October 2017

कागा की छतरिया । जोधपुर । Cenotaphs of Kaga । Jodhpur । Rajasthan

कागा की छतरियां  | Cenotaphs of Kaga  | Jodhpur | Rajasthan


राजपूताने में दिवंगत व्यक्ति की स्मृति में छतरी Cenotaph अथवा देवल Temple  के निर्माण की परंपरा रही है और जोधपुर में ये परम्परा अत्यंत  समृद्ध रूप में रही और तक़रीबन हर समाज द्वारा दिवंगत की स्मृति में छतरियों  का निर्माण करवाया गया।  कागा के पवित्र तीर्थ स्थल होने के कारण ही संभवत यहाँ राज परिवार के सदस्यों और अन्य कुलीन राजपूतो का अंतिम संस्कार यहाँ किया जाने लगा था और  वही  उनकी स्मृति  में  छतरियो का निर्माण किया जाता था जिसमे एक शिलालेख लगाया जाता था| कुछ छतरियो जो की ऊँचे चबूतरे पर बनी हुई है के गुम्बद के अन्दर और बाहर  की नक्काशी देखने लायक है, छतरियो पर की गई कोडियो की पालिश की चमक आज भी बनी हुई है| कागा की भव्य कलात्मक छतरियो को देखकर आप मन्त्रमुग्ध हो जाते है छतरियो  में लगे शिलालेख आपको दिवंगत सरदारों के गौरवशाली अतीत में ले जाते है | इन छतरियो में सो रहे वीर राजपूतो ने अपनी स्वामिभक्ति और राज्य की सम्प्रभुता  के लिए अपने प्राणों दी थी। 

कागा में राज परिवार के सदस्यों ,राजपूतो, राजपुरोहितो, चारणों एवं अन्य की छोटी बड़ी छतरियो को मिला कर लगभग डेढ़ सौ छत्रिया स्थित है|इन छतरियो में झालामंड के ठाकुर गंभीर सिंह जी की दो रानियों के सतीमाता थान है|पुरबिया राजपूत नुहा सिंह की छतरी है|बीस खम्बो वाली श्रीमंत विक्रमादित्य राजपूत की छतरी है| राव राजा सूरत सिंह की पौत्री कुंवरी नरेन्द्र कँवर राठोर की छतरी तथा महाराजा उम्मीद सिंह जी की दादी की छतरी स्थित है| 

सबसे प्रसिद्ध छतरी है जोधपुर राज्य के प्रधान मंत्री और आसोप के ठाकुर राज सिंह कुम्पावतजी  की जिन्होंने सन 1608  में जोधपुर नरेश गज सिंह जी म्रत्यु होने पर 11  वर्षीय नरेश महाराजा जसवंत सिंह प्रथम के राज्य को संभाला था और मुग़ल सम्राट शाहजहाँ  ने गजसिंह जी मृत्यु होने पर जहा जसवंत सिंह जी को चार हजारी मंसब और चार हजारी जात देकर राजतिलक किया था वही आसोप के ठाकुर राज सिंह जी कुम्पावत को भी एक हजारी जात और चार सौ सवार का मंसब देकर उनका प्रधान मंत्री नियुक्त किया था कहा जाता है की महाराजा जसवंत सिंह जी प्रथम को प्रेतबाधा से मुक्ति दिलवाने के लिए उनके प्रधानमन्त्री राज सिंह जी कुम्पावत ने स्वयं अपनी गर्दन काट कर अपने प्राणों का बलिदान दिया था ताकि महाराजा के प्राणों की रक्षा की जा सके कितु अपने प्राणों की आहुति देने से पूर्व उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों से स्पष्ट कहा था की यदि उनमे राजपरिवार के लिए अपने प्राणों को उत्सर्ग करने का साहस हो तभी राज्य सेवा में आये अन्यथा कभी भी राज्य सेवा में नहीं आये|कुछ लोगो का कहना है की राज सिंह के राज्य में बढ़ते प्रभाव के कारण उनके विरुद्ध साजिश की गई थी| दुर्ग की तलहटी में पुराने शहर में नायो के बड के पास आसोप ठाकुर राज सिंह जी कुम्पावत की हवेली स्थित है जिसमे राजसिंह जी कुम्पावत का थान बना हुवा है| वर्तमान में हवेली में अनेक अन्य जाती के परिवारों का निवास है|

जोधपुर में पहाडियों के मध्य स्थित कागा के बारे में जनश्रुति  है की यह स्थान प्राचीन काल में एक पवित्र तीर्थ स्थल था  जहा ऋषि काग भुसंडी ने तपस्या की थी तथा उनके तपोबल से गंगा की जल धारा प्रकट हो गई थी और जहा जलधारा का उद्गम हुवा था वहा गंगोद्भव कुएं का निर्माण किया गया था जो आज भी विद्यमान है और कहते है की उस कुए का पानी दुष्काल में भी कभी नहीं सुखा और  उस कुए का पानी दूर दूर से लोग लेने आते है और ये मान्यता है की उसके जल के सेवन से अनेक रोग ठीक हो जाते है|मगर वर्तमान में ये कुआ पूर्णतया उपेक्षित है।

कागा में शीतला माता का प्रसिद्द मंदिर है जिसके बारे में जनश्रुति  है  की पहले इस मंदिर में विराजित शीतला माता की मूर्ति मेहरानगढ़ दुर्ग में थी मगर जोधपुर के महाराजा विजय सिंह के पुत्र  सरदार सिंह की  ओरी निकलने से मृत्यु  हो जाने पर क्षुब्ध और क्रोधित राजा ने माताजी की मूर्ति को दुर्ग से निकलवा कर निर्जन वन में फिकवाने और हाथी के पैर से भग्न करवाने का आदेश दे दिया| राजा की आज्ञा से मूर्ति को कागा की पहाडियों में फेंक दिया गया था| किवदंती के अनुसार बाद में माली जाती की एक महिला को स्वप्न में देवी ने दर्शन देकर कहा की मुझे पहाडो में स्थापित कर दिया जाए| महिला ने माता की आज्ञा मान कर मूर्ति को पहाडो में जहा आज वर्तमान शीतला माता मंदिर है वहा  स्थापित कर दिया तथा बाद में जब राजा को अपनी गलती का अहसास हुवा तो उसने पुरे परिवार के सदस्यों के साथ पैदल जाकर माता जी से क्षमा याचना की और पुन मूर्ति को दुर्ग ले जाने की मंशा व्यक्त की किन्तु राजगुरु के कहने पर वही भव्य मंदिर बनवा दिया| 

कागा में ही महाराजा जसवंत सिंह जी ने अनार का बगीचा लगवाया था और इसके लिए काबुल से लाकर मिटटी डलवाई गई थी।  देख रेख के अभाव में  बाग़ उजड़ गया मगर  पश्चिमी राजस्थान  को अनार से परिचय करवा गया|

वर्तमान में विभिन्न समाजो द्वारा अपने अपने स्वर्गाश्रमो (दाह स्थलों) की चारदीवारी के निर्माण  किये जाने के कारण छतरियों को नजदीक से देखना सुलभ नहीं रहा है। देखरेख के अभाव में और अतिक्रमण के कारण भी अनेक ऐतिहासिक छतरियों को भराव डाल कर पाटा जा रहा है और निर्माण कार्य हो रहे है।अनेक छतरियों के चारो तरफ चारदीवारी बना कर उन्हें आवास या दूकान के रूप में उपयोग में लिया जा रहा है। मेरे देखते देखते अनेक  छतरियां नष्ट और जमींदोज हो चुकी है। जरुरत है इस ऐतिहासिक धरोहर के तत्काल संरक्षण की और इनके  पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के सुलभ दर्शनार्थ की व्यवस्था किये जाने की। राज्य पुरातत्व एवं संग्रहालय  विभाग और जिला प्रशासन तथा छतरियों की देख रेख करने वाले विभिन्न  समाजो और उनके ट्रस्ट के  पदाधिकारियों को एक  साथ बैठ कर इन ऐतिहासिक छतरियों के संरक्षण और यहाँ पर्यटकीय सुविधाओं के विकास हेतु कार्य योजना बनाये जाने की दरकार है। इस विषय पर पर्यटन विभाग द्वारा जिला कलेक्टर महोदय की अध्यक्षता में होने वाली जिला पर्यटन विकास समिति की दिनांक 11 फरवरी 2022 को आयोजित हुई बैठक में उठाया जा चूका है जिसमे जिला कलेक्टर महोदय द्वारा राज्य पुरातत्व एवं संग्रहालय  विभाग के स्थानीय अधिकारियों को इन छतरियों के संरक्षण हेतु प्रस्ताव बनाने के लिए निर्देशित किया गया है। 


शरद व्यास, 23.02.22 














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