रानीसागर और पदमसागर
जलाशय, जोधपुर
जोधपुर के परकोटे के भीतर स्थित पुराने शहर में
मेहरानगढ़ दुर्ग से एकदम सटे हुवे दुर्ग की तलहटी में दो जलाशय बने हुवे है रानी
सागर और पदम् सागर जो रियासत काल में प्रमुख जल स्रोत थे तथा दुर्ग के भीतर भी
इन्ही से जल की आपूर्ति की जाती थी| इन जलाशयों के नीचे
की और रानी सागर की दिशा की तरफ दुर्ग का पुराना प्रवेश द्वार फ़तेह पोल स्थित है
तथा पदम् सागर की तरफ से ब्रम्हपुरी क्षेत्र में जाने का रास्ता है | रानी सागर और पदम् सागर
के मध्य एक बाँध बना हुवा है जो उन्हें आपस में विभक्त करता है|वर्षाकाल में जब ये दोनों जलाशय लबालब हो जाते है और ओवरफ्लो की स्थिति बनती
है उसे स्थानीय भाषा में “ओटा” कहा जाता है
रानीसागर का निर्माण राव
जोधाजी की हाडी रानी जस्मादे ने १४५९ में करवाया था | मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में बना रानी सागर जलाशय अपने निर्माण के उपरान्त
५०० वर्ष तक प्रमुख जल स्रोत के रूप में काम आया था | इस जलाशय पर एक विशाल बुर्ज बना हुवा है जिस पर जल निकासी हेतु अरहट बना हुवा है जिससे प्रारम्भ में केवल दुर्ग में जल की आपूर्ति की जाती थी किंतु राज्य में आकाल पड़ने के कारण सन 1858 में तत्कालीन शासक तखत सिंह जी ने मारवाड़ की प्रजा को इस जलाशय से जल का उपयोग करने हेतु प्रवेश के लिए खोल दिया था | महल तक जल ले जाने हेतु दुर्ग में नीचे से ऊपर महल तक अनेक जगह जल कुंड तथा नहरे बनी हुई है जिनके ऊपर जल खींचने के लिए अरहट बने हुवे है। इस बुर्ज के नीचे जलदाय विभाग के सयंत्र लगे है जिससे जल की आपूर्ति की जाती
है तथा पास में एक मंदिर भी बना हुवा है|रानी सागर के प्रवेश
द्वार के अन्दर एक व्यायाम शाळा का संचालन होता है|व्यायाम शाळा के ऊपर
की तरफ और बुर्ज के सामने दो छतरिया बनी
हुई है जिसमें शिलालेख लगे है | कुछ वर्षो पूर्व मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट द्वारा इस जलाशय की साफ़ सफाई का कार्य करवाया गया था तब जलाशय के तल में पांच कुए या बेरिया नजर आयी थी जो संभवत दुष्काल में जलाशय के सुख जाने पर पेयजल आपूर्ति हेतु निर्मित की गई होगी। इन बेरियो के नाम राम बेरा ,गंगा बेरा आदि है।
पदमसागर का निर्माण कुछ इतिहासकारों के अनुसार राव गांगा की
रानी पद्मावती ने करवाया था जो की मेवाड़ के राणा सांगा की पुत्री थी| जबकि वहा लगे सुचना पट के अनुसार इसका निर्माण राव गांगा की देवडी रानी ने सन
१५२० में करवाया था| रियायत काल से पदम् सागर पर क्रिया काण्ड तथा तर्पण आदि होते रहे है। यहाँ राज ज्योतिष चण्डूजी का स्थान भी है जिनका प्रसिद्द चन्डू पंचांग आज भी प्रकाशित होता है। गणगौर पूजन करने वाली महिलाये गणगौर माता को जल पिलाने के लिए सजधज कर बड़े धूमधाम और गाजेबाजे के साथ पदमसागर में लोटे या लोटिया भरने आती है जिसे स्थानीय लोगो में लोटिया उत्सव के नाम से जाना जाता है। पदम् सागर की पाल पर भी एक मंदिर और एक विशाल प्रसाद
बना हुवा है जिसका कलात्मक झरोखा देखने लायक है वर्तमान में ये शायद किसी का निजी निवास स्थान है |पदम सागर के बुर्ज पर भी जल निकासी हेतु अरहट बना हुवा है जहा से संभवत दुर्ग
में जल की आपूर्ति होती होगी |
रानी सागर और पदम् सागर से परकोटे के भीतर स्थित अनेक बावडिया और कुँए भूमिगत जल वाहिकाओं या जल शिराओ से जुड़े हुवे है। वर्षाकाल में इन दोनों जलाशयों के भरने पर सभी कुए और बावडिया भी भर जाती है। वर्षा काल में इन दोनों जलाशयों में इनके पीछे स्थित पहाड़ी क्षेत्र के कैचमेंट एरिया जिसे भाकर रानी सागर के नाम से जाना जाता है से नहर द्वारा जल पदम सागर में आता है तथा पदम् सागर से रानी सागर में। शहर के राउटी क्षेत्र तथा धोबी कुंड क्षेत्र से भी जल नहर में होता हुवा पदमसागर में आता है। वर्तमान मेंअनेक स्थानों पर अतिक्रमण से तथा मनमाने निर्माण से जल संग्रहण क्षेत्र और जल प्रवाह का मार्ग अवरुद्ध हो रहा है जो इन सभी ऐतिहासिक जल संचयन की धरोहरों के लिए चिंता का विषय है। इस सम्बन्ध में जन जागरूकता तथा समुचित सरकारी प्रतिबन्ध और कार्यवाही अपेक्षित है। जल है तो कल है।
शरद व्यास ३०-०९०१६
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