भामाशाह की हवेली - चित्तौड़गढ़
कुछ महान व्यक्ति अपने जीवनकाल में कुछ ऐसे महान कार्य कर
जाते है की उनका नाम कालजयी हो जाता है।
भारतीय इतिहास में ऐसे
ही एक महान व्यक्ति हुवे है भामाशाह, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वातंत्रता तथा आत्म
स्वाभिमान के प्रतिक हिंदुआ सूरज] मेवाड़ के महाराणा प्रताप की मुगलों के विरुद्ध
संघर्ष के समय में आर्थिक सहायता की थी जिसके कारण उनका नाम आज भारतीय समाज में दान
पूण्य का पर्यायवाची बन चूका है। और आज जब भी कोई व्यक्ति समाज सेवा और जनहित कार्यो हेतु आर्थिक
सहायता प्रदान करता है तो उसे भामाशाह की ही उपमा दी जाती है। भारत सरकार तथा राज्य सरकारों की अनेक योजनाओं तथा
पुरस्कारों का नामांकरण भामाशाह के नाम पर किया गया है।
भामाशाह का जन्म जैन कावड़िया परिवार में आषाढ़ शुक्ल 10 संवत
1604 तदनुसार इसवी संवत 1547 में हुवा था। भामाशाह के पिता का नाम भारमल था जो की
महाराणा सांगा के समय किलेदार तथा महाराणा उदय सिंह के समय मेवाड़ राज्य के प्रधान थे।
भामाशाह और उनके बड़े भाई ताराचंद बड़े ही वीर थे।इतिहासकारों के अनुसार इसवी सन
1576 में मुगलों के साथ हुवे हल्दीघाटी युद्ध के उपरान्त जब महाराणा प्रताप आर्थिक
संसाधनों के अभाव में मेवाड़ की पहाडियों के जंगलो में कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत कर
रहे थे तथा सैन्य प्रबंध हेतु उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड रहा था तब ऐसे
समय में भामाशाह ने उन्हें 20000 स्वर्ण मुद्राए तथा और 20 लाख रुपये की मुद्राए
प्रदान की थी जो की उस समय पच्चीस हजार सैनिको के लिए 12 वर्षो के वेतन हेतु
पर्याप्त थी। कहते है की ये अपार धनराशी भामाशाह और उनके भाई ताराचंद ने मालवा पर
धावा बोल कर लुटी थी और महाराणा प्रताप को ये कहते हुवे समर्पित की थी की ये पहली
किश्त है अब आप सब चिंताए छोड़कर मेवाड़ की रक्षा करे।
भामाशाह की बहादुरी और देशभक्ति देखकर महाराणा प्रताप ने रामा
मेह्सानी को हटाकर भामाशाह को मेवाड़ का प्रधान
बनाया। कहते है की भामाशाह ने मुगलों के साथ संघर्ष के समय दिवेर स्थित मुगलों के
शाही थानों पर आक्रमण में मेवाड़ी सेना का नेतृत्व करते हुवे अभूतपूर्व वीरता का
परिचय दिया था। डा ए.एल.जैन के अनुसार भामाशाह को राजकोष के ब्योरे को रखने में
तथा उसे अलग अलग स्थानों पर छिपा कर रखने में इतनी निपुणता प्राप्त थी वे बड़ी
कुशलता से राज्य का खर्च चलाते थे तथा मुगलों को मेवाड़ पर आक्रमण के समय लूटपाट
करने के दौरान कुछ भी नहीं मिला। अपनी म्रत्यु 16 जनवरी 1600 से पूर्व उन्होंने
अपनी पत्नी को राजकोष से सम्बंधित सभी बही खाते देते हुवे कहा था की इन्हें
सुरक्षित महाराणा अमर सिंह जी तक पहुंचा देना। उनकी इमानदारी तथा स्वामिभक्ति के
कारण ही भामाशाह के बाद उनके पुत्र जिवाशाह को महाराणा अमर सिंह ने मेवाड़ का
प्रधान बनाया तथा जीवाशाह के पुत्र अक्षयराज को महाराणा कर्ण सिंह ने मेवाड़ राज्य
का प्रधान नियुक्त किया था। इस तरह एक ही परिवार की चार पीढ़िया अपनी इमानदारी,
स्वामिभक्ति और राज्य निष्ठां के कारण मेवाड़ राज्य के प्रधान के सम्मानजनक पद पर आसीन
रही और अपने कुल के गौरव में वृद्धि की। इस परिवार के सम्मान हेतु महाराणा स्वरुप
सिंह तथा महाराणा फ़तेह सिंह ने भी ऐसी राज आज्ञाए निकाली की राज् परिवार के किसी
भी सामूहिक भोज के प्रारम्भ से पूर्व इस परिवार के मुख्य वंशधर का तिलक किया
जायेगा ।
डा श्री कृष्ण जुगनू जी के मतानुसार भामाशाह को महाराणा उदय
सिंह जी ने ही मेवाड़ को प्रधान नियुक्त कर दिया था उनके अनुसार दानवीर भामाशाह के
लिए एक उक्ति इतिहासकारों ने प्रचलित की है- भामो परधानो कियो रामो कीनो रद्द। वो
गलत है उन्हके मतानुसार महाराणा प्रताप को भामाशाह जैसा
अनुभवी प्रधान प्रताप को पिता के काल से मिला था जिसके प्रमाण स्वरुप वे चित्तौड़गढ़ जिले की गंगरार तहसील के भाणपी नामक गांव से
प्राप्त हुवे ताम्रपत्र का उल्लेख करते हुवे लिखते है की इस गांव में चित्तौड़गढ़
पर अकबर के हमले से पूर्व, 1554 ईस्वी
में महाराणा उदयसिंह द्वारा पुरोहित द्वारकेश को दिया गया ताम्रपत्र मौजूद है।
वहां के पारीख समुदाय के बुजुर्गों ने बताया कि था नेवरिया गांव में किसानों के
साथ हुए संघर्ष में छह पारीख बंधु काम आ गए, शेष रहे द्वारकेश पुरोहित को भाणपी गांव बतौर जागीर मिला
था।ताम्रपत्र का मूलपाठ इतिहास प्रेमी मित्रों को रुचिकर लगेगा और अब नए सिरे से
लिखा जाना चाहिए कि भामाशाह को प्रधान महाराणा प्रताप से पूर्व ही उनके पिता उदयसिंह ने
बनाया था और प्रताप को अपने राज्य के लिए ऐसा दक्ष प्रधान मिला, जो प्रज्ञा, पैसा-प्रबंधन
और पराक्रम का भी धनी था। मूलपाठ इस प्रकार है :
श्री रामो जयति।
श्रीगणेश प्रसादातु, श्री एकलिंग प्रसादातु
सही
महाराजाधीराज श्री उदेसींघजी आदेसातु, प्रोहित द्वारकेशर कस्य गांव 1 भाणपी आघाट उदेक दत्ता, संवत् 1611 वर्षे माह (माघ) सुदी 15, दुए श्रीमुखे प्रतिदुए भामजी साह प्रषेते, स्वदत्ता परदत्ता वाजो हरंते वसुंधरा, षष्टि वर्ष सहस्रोणि विष्ठातो जायंते कृमी। लिखितं पंचोली गोवर्धन।
श्रीगणेश प्रसादातु, श्री एकलिंग प्रसादातु
सही
महाराजाधीराज श्री उदेसींघजी आदेसातु, प्रोहित द्वारकेशर कस्य गांव 1 भाणपी आघाट उदेक दत्ता, संवत् 1611 वर्षे माह (माघ) सुदी 15, दुए श्रीमुखे प्रतिदुए भामजी साह प्रषेते, स्वदत्ता परदत्ता वाजो हरंते वसुंधरा, षष्टि वर्ष सहस्रोणि विष्ठातो जायंते कृमी। लिखितं पंचोली गोवर्धन।
चित्तौडगढ
स्थित भामाशाह की हवेली को भामाशाह की हवेली कहा जाने का तथ्य श्री कृष्ण जुगनू जी
के मत का समर्थन करता है क्योकि इसवी सन 1567 में चित्तौडगढ पर अकबर के आक्रमण तथा
महाराणा उदय सिंह के वंहा से उदयपुर चले जाने पश्चात महाराणा अमर सिंह की मुगलों
से हुई संधि तक के काल में चित्तौडगढ पर मुगलों का आधिपत्य रहा था। किन्तु भामाशाह की जन्मतिथि इसवी सन 1547 में होने का
तथ्य इस सम्बन्ध में संशय अवश्य उत्पन्न करता है
की इतनी अल्पायु में महाराणा उदय सिंह जी
द्वारा उन्हें मेवाड़ के प्रधान जैसे पद पर नियुक्त किया गया होगा अथवा नहीं ? और
संभव है उनके पिता भारमल जो की मेवाड़ राज्य के प्रधान रहे थे वहा निवास करते होंगे। सत्य जो भी हो दानवीर भामाशाह भारतीय इतिहास और
समाज में सदैव वन्दनीय और अनुकरणीय रहेंगे।
वर्तमान
चित्तौडगढ दुर्ग में तोपखाने के सामने स्थित भामाशाह की हवेली का जीर्णोधार भारतीय
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा करवाया गया है। हवेली के मुख्य द्वार में प्रवेश
करते ही अन्दर दोनों तरफ दो कक्ष बने हुवे है उसके आगे एक विशाल स्तंभों पर टिका
एक बरामदा बना हुवा है जो की संभवत आम जन से तथा अतिथियों से मिलने हेतु प्रयोग में
लिया जाता होगा। आगे खुले भाग में चौक में मध्य में पानी के कलात्मक कुंड बना है
जिसमे पानी के निकास हेतु नाली बनी हुई है। दोनों तरफ उंचाई लिए चबूतरे बने हुवे है
तथा उनके तीन मंजिला पीछे मुख्य निवास भवन बना हुवा है। मुख्य भवन के सामने भी कुछ
कक्ष होने के प्रमाण मिलते है। वर्तमान में सम्पूर्ण परिसर के चारो तरफ सीताफल के
वृक्षों की भरमार है तथा हवेली के सामने दाई तरफ प्राचीन पातालेश्वर महादेव का
मंदिर अवस्थित है तथा उसके पीछे ही मोती बाजार और नगीना बाजार बने हुवे है। इस
हवेली की दुर्ग में अवस्थिति कुछ इस प्रकार की है ये पर्यटकों की नजरो से ओझल रहता
है अत अगली बार चित्तौडगढ दुर्ग पर आये तो भामाशाह की हवेली देखना मत भूलियेगा।
जय जय
......शरद व्यास (01.11.17)
भामाशाह हवेली का वीडियो देखने के लिए कृपया नीचे दिए हुवे लिंक पर क्लिक करे -
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