क्या उदयपुर का प्रसिद्ध जावर माता का मंदिर मूलत वैष्णव मंदिर था?
उदयपुर से करीब 35 किलोमीटर उदयपुर अहमदाबाद मार्ग पर स्थित टीडी गाँव से अन्दर जावर गाँव जाने
वाले रास्ते में 3 किलोमीटर आगे स्थित है जावर माता का भव्य मंदिर| जावर माता का मंदिर कब बना या किसने बनाया इसके सम्बन्ध में हमें कोई स्पष्ट
जानकारी तो प्राप्त नहीं होती है किन्तु जैसा की डा अरविन्द कुमार अपनी पुस्तक
जावर का इतिहास में लिखते है की मुख्य मंदिर के गर्भ गृह के बाहर शिल्पांकित
सैंकड़ो सजावटी मूर्तिया लगी होने के आधार पर हम इसे नवी शताब्दी के बाद का और दसवी
शताब्दी में निर्मित हुवा मान सकते है| लेखक के अनुसार नवी शताब्दी
तक बने मंदिरों के गर्भ गृह के बाहर लगी मुर्तिया किसी विशेष प्रयोजन या आख्यान
अथवा पौराणिक कथा को अपने में समेटे हुवे होती थी| उसके बाद मंदिर के गर्भगृह के मंडोवर या जंघा भाग में सजावटी मुर्तिया स्थापित करने का प्रचलन हुवा |
मदिर के इतिहास के बारे में जानकारी का प्रमुख
स्रोत मंदिर के पुजारियों, औदिच्य ब्राह्मणों की पोथिया है|इस मंदिर के निर्माण से
सम्बंधित कोई शिलालेख प्राप्त नहीं हुवा है| महाराणा लाख के एक तामपत्र
जिसमे महाराणा लाखा ने इस मंदिर के लिए मंदिर के पुजारी परिवार को भूमि दान में दी
थी का उल्लेख वीर विनोद के लेखक कविवर श्यामदास और डा गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने भी
किया है किन्तु किसी को मूल ताम्रपत्र देखने का मौका प्राप्त नहीं हुवा| मंदिर के गर्भ गृह के बाहर दोनों तरफ दो शिलालेख लगे हुवे थे जो वर्तमान में
मंदिर की मरम्मत के कार्य में अन्दर दबा दिए गए है |इतना गैर जिम्मेदाराना कृत्य
??? उक्त शिलालेखो में किसी पंचोली परिवार के तीर्थ यात्रा कर आने का उल्लेख था
किन्तु उससे मंदिर की प्राचीनता के सम्बन्ध में अच्छा प्रकाश पड़ता|
मंदिर अपने सभी भागो सहित मौजूद है| पूर्वमुखी इस मंदिर के पश्चिम दिशा में स्थित गर्भ गृह चोकोर है किन्तु
गर्भगृह के चारो तरफ एक और दीवार बनाई गई है ताकि दीवार के बाहर कीतरफ मूर्तियों
को स्थापित किया जा सके| गर्भ गृह में महिषासुरमर्दिनी की भव्य मूर्ति
स्थापित है किन्तु उसका स्वरुप रौद्र न होकर शान्तिपूर्ण है| गर्भगृह के आगे अंतराल तथा
उसके आगे दो मंजिला सभामंड़प है जिसमे नीचे
के ताल में 64 स्तम्भ है तथा ऊपर के ताल में 32 स्तम्भ है|सभामंड़प में अप्सराओं की मुर्तिया
लगी हुई है| आगे अर्धअंतराल है तथा उसके सामने 8 फीट दुरी पर गर्भगृह
की उंचाई वाला वाहन स्थल है जिसमे माताजी के वाहन बाघों की मुर्तिया स्थापित की गई
है तथा उनके सामने ही वर्तमान में पशु बली देने हेतु पर्दा लगा रखा है ???
डा अरविन्द कुमार ने जावर माताजी के मदिर के गर्भ
गृह की चौखट के बाहर दोनों तरफ स्थापित भगवान् विष्णु के प्रतिहार चन्ड प्रचंड तथा
गर्भ गृह की बाहरी दीवारों की तरफ बने गवाक्षो में पीछे, दाई तरफ तथा बायीं तरफ के
तीनो गवाक्षो में स्थापित भगवान् विष्णु जी की मूर्तियों के आधार पर इसे मूलत: भगवान्
विष्णु का मंदिर होने तथा माताजी की मूर्ति यंहा बाद में स्थापित होने का मत दिया
है|तथा मूल मूर्ति भगवान् विष्णु के 20 हस्त वाली विश्वरूप के
होने का मत दिया है|
औदिच्य ब्राह्मणों की पोथी तथा स्थानीय जनता भी ये
बात स्वीकार करती है की मूल मंदिर किसी और भगवान् का था माताजी अम्बाजी जी चित्तोड़
के प्रथम शाके के बाद यंहा पधारी है| इस मंदिर ने तीन चर तुर्क –
मुग़ल आक्रमण झेले है अत ये प्रतित होता है की अल्लाउद्दीन खिलजी के 1303 में चित्तौड़
पर किये गए आक्रमण के समय वो जावर से भी गुजरा था और उसके जावर को लुटने का इतिहास
है उसी दौरान उसने इस मंदिर में लगी भगवन विष्णुजी की मूर्ति को खंडित कर दिया होगा
तथा 1313 के लगभग चित्तौड़ से मूर्ति को
लाकर इस मंदिर में स्थापित किया गया होगा| उसी समय औदिच्य ब्राह्मणों
को गुजरात से यहाँ पूजा पाठ के लिए बुलाया गया था| माताजी की मूर्ति राणा लाख
के समय मौजूद थी अर्थात देवी की मूर्ति हम्मीर से भी पहले जब खिज्रखा के बाद
चित्तौडगढ पर सोनगरा चौहानों का शासन था उस समय यहा ली गई होगी| डा बलवंत सिंह मेहता के अनुसार इस मंदिर का जीर्णोधार भामाशाह ने करवाया था
इस प्रमाण का एक शिलालेख इस मंदिर में मौजूद था कितु डा बलवंत सिंह मेहता द्वारा
उल्लेखित शिलालेख भी कंही नजर नहीं आता है| मित्रो हद तो इस बात की है
की इस पोस्ट के साथ एक शिलालेख का जो फोटोग्राफ मै लगा रहा हु जो मैंने तक़रीबन एक
वर्ष पूर्व खिंचा थाउसे भी मंदिर की मरम्मत के दौरान प्लास्टर में चुनवा दिया गया
है??
जावर माता के इस मंदिर पर अल्लाउद्दीन खिलजी ने ,
महाराणा रायमल के शासन के दौरान मालवा के सुलतान ने तथा महाराणा प्रताप के दौरान
शाहबाज खान ने आक्रमण कर इसे नष्ट किया था अत इस बात की संभावना है की मंदिर का
तीन बार जीर्णोधार हुवा होगा और जीर्णोधार से सम्बंधित शिलालेख इस मंदिर में अवश्य
लगाया गया होगा|वर्तमान में मंदिर की मरम्मत में सावधानी या पुरातत्व
विशेषज्ञो के अधीन मरम्मत करवाए जाने की आवश्यकता है|
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