Friday, 22 June 2018

मेहरानगढ़ दुर्ग की कहानी –1 (अभेद तथा सुरक्षित दुर्ग के निर्माण की आवश्यकता)


अभेद तथा सुरक्षित दुर्ग के निर्माण की आवश्यकता 

मेहरानगढ़ दुर्ग की स्थापना राव जोधाजी ने की थी| राव जोधाजी राव रणमल के पुत्र तथा राव चुंडा के पौत्र थे जिन्होंने मंडौर पर अधिकार किया था| राव जोधा अपने प्रारम्भिक काल में अपने पिता राव रणमल के साथ चित्तौडगढ दुर्ग में रहे जो राव चुंडा के ज्येष्ठ पुत्र होने के बावजूद राव चुंडा द्वारा अपने छोटे पुत्र कान्हा को मंडोर का उतराधिकारी बनाने के कारण अपने पिता से अनबन होने तथा मेवाड़ के महाराणा मोकल की मृत्यु होने के उपरान्त उनकी माता तथा अपनी छोटी बहिन हंसाबाई के कहने पर महाराणा मोकल के पुत्र महाराणा कुम्भा के अवयस्क होने के कारण मेवाड़ के राज काज में सहायता प्रदान करने के लिए कुछ सरदारों के साथ वही रहते थे| किन्तु परवर्ती काल में महाराणा कुम्भा के  मेवाडी सरदारों को राव रणमल के  मेवाड़ में बढ़ते प्रभुत्व तथा उच्च पदों पर राठौड़ सरदारों की नियुक्ति अखरने लगी तथा राव रणमल द्वारा चुंडा के छोटे भाई राघव देव की हत्या के उपरान्त चुंडा के मांडू से मेवाड़ आने तथा अजा एका द्वारा राव रणमल की हत्या के उपरान्त राव जोधाजी भाग कर मारवाड़ में आ गए किन्तु मंडौर पर भी महाराणा कुम्भा के सरदारों अज्जा, एका, हिंगलू अहाडा आदि ने अधिकार कर लिया था जिसके कारण 14 वर्षो तक राव जोधा भटकते रहे तथा बाद में पर्याप्त सैन्य शक्ति प्राप्त करने पर उन्होंने 1453 में मंडोर पर आक्रमण कर अधिकार किया तथा शने: शने: सम्पूर्ण मारवाड़ पर अधिकार कर लिया तहत बाद में हंसाबाई के हस्तक्षेप से महाराणा कुम्भा से संधि होने पर राव जोधा ने अपने राज्य के विकास पर ध्यान दिया|

मंडोर पर अधिकार तथा अपनी साम्राज्यवादी महत्वकांक्षाओ के कारण राव जोधाजी ने एक अभेद दुर्ग निर्माण करने का विचार किया | मंडोर दुर्ग होने के बावजूद राव जोधाजी के एक अभेद सुरक्षित  दुर्ग निर्माण के विचार के  पीछे निम्नलिखित कारण थे|

   मंडौर एक असुरक्षित दुर्ग था जिसने भी मंडौर पर आक्रमण किया उसे विजय प्राप्त हुई थी| 1226 इसवी में इल्तुतमिश ने इस पर अधिकार कर लिया था बाद में अल्लाउद्दीन खिलजी ने भी इस पर विजय प्राप्त की थी, बाद में गुजरात के जफ़र खान ने मंडौर पर जीत हासिल की| इन्दा परिहारो ने राव चुंडा की सहायता से जफ़र खान के हाकिम ऐबक खान को पराजित कर मंडौर पर अधिकार कर लिया था बाद में राव चुंडा से प्रतिहार राजकुमारी का विवाह होने पर उन्हें मंडौर दहेज़ में प्राप्त हो गया था| राव चुंडा की मृत्यु होने तथा उनके उतराधिकारी कान्हा की म्रत्यु होने पर चुंडा के जयेष्ट पुत्र राव रणमल ने मेवाड़ की सहायता से मंडौर पर आक्रमण कर अपने ही भाई सत्ता से मंडौर छीन लिया| रिडमल की हत्या के बाद मेवाड़ी सरदारों ने मंडौर पर आक्रमण कर इस पर आधिपत्य कर लिया था तथा स्वयं राव जोधाजी ने भी 1453 में आक्रमण कर मेवाड़ी सरदारों को मार कर इस पर अधिकार कर लिया था अत ये बात पुष्ट हो चली थी की मंडौर पर आक्रमण करने वाला सदैव विजयी रहता है| इस कारण राव जोधाजी मंडौर की बजाय किसी सुरक्षित दुर्ग का निर्माण करना चाहते थे|
 
    मंडौर दुर्ग की स्थापना आठवी शताब्दी में नाग वंशी शासको द्वारा की गई थी तथा राव जोधाजी के काल में मंडौर दुर्ग अत्यंत प्राचीन तथा जीर्ण शीर्ण हो चला था जिसकी मरम्मत के बावजूद भी वो सुरक्षित नहीं हो पाता इसी विचार के चलते राव जोधाजी ने नवीन दुर्ग बनवाने के बारे में विचार किया|

   राव जोधा भी अपने पिता के ज्येष्ठ पुत्र नहीं थे जयेष्ट पुत्र राव अखेराज थे किन्तु चूँकि राव जोधा ने अपने बाहुबल से मंडौर पर अधिकार किया था इसलिए उन्होंने सहर्ष मंडौर से अपना दावा त्याग दिया था और राव जोधा ने उन्हें बगड़ी की जागीर प्रदान की थी| किन्तु भविष्य का कोई भरोसा नहीं है जिस प्रकार राव रणमल ने भी अपने पिता के कहने पर ज्येष्ठ पुत्र होने के बावजूद मंडौर पर से अपना अधिकार त्याग दिया था किन्तु पिता की म्रत्यु के उपरान्त आक्रमण कर अधिकार कर लिया था| कही जोधा की म्रत्यु होने के उपरान्त अखेराज या उसके वंशज मंडौर पर अपना दावा न प्रस्तुत कर दे? यही सोच कर राव जोधा ने अपने लिए अलग से दुर्ग बनाने का विचार किया|
      
  राव जोधाजी की साम्राज्यवादी नीतियों के चलते भी एक सुरक्षित तथा अभेद दुर्ग की आवश्यकता थी| राव जोधाजी ने दिल्ली के शासक बहलोल लोदी के सामंत सारंग खान को पराजित कर हिसार पर आधिपत्य कर लिया था,छापर द्रोंणमुख  तथा बीकानेर तथा मेड़ता की स्थापना तथा अनेक जगहों पर आधिपत्य कर अपने साम्राज्य को विशाल बना लिया था| जिसके कारण एक सुरक्षित तथा अभेद दुर्ग की नितांत आवश्यकता थी|

  अपने नाम की कीर्ति अमर करने के लिए दुर्ग बनवाना जोधाजी के लिए एक सर्वोत्तम कार्य था|  क्रमश:...

sस्रोत- जोधपुर का एतिहासिक दुर्ग -मेहरानगढ़ 
  प्रो जुहूर खा मेहर तथा डा महेंद्र सिंह नगर 









No comments:

Post a Comment