Saturday, 1 October 2016

महिला बाग़ झालरा, जोधपुर

गुलाब सागर के पास में स्थित महिला बाग़ झालरे का निर्माण जोधपुर के नरेश विजय सिंह जी की पासवान गुलाब राय ने सन १७८० में करवाया था | कहते है की उस समय इसे बनवाने में पांच लाख रुपये का व्यय किया गया था| इस झालरे को सुरंग से गुलाब सागर से जोड़ा गया है जिससे इसमें पानी की आवाक बराबर बनी रहती है| इस झालरे को चौमुखी घाट वाली बावड़ी भी कहते है| इस झालरे के पास में ही गुलाब राय ने एक बाग़ भी बनवाया था जिसे महिला बाग़ कहते है| बाद में इस बाग़ में ह्युसन अस्पताल खोला गया था और एक पाठशाला का भी संचालन किया गया था जिसे महिला बाग़ स्कूल के नाम से जाना जाता है| इस झालरे के चारो तरफ सुन्दर नक्काशी का कार्य युक्त छतरियो का निर्माण किया हुवा है|वर्तमान में एक निजी होटल ग्रुप ने इसे गोद ले लिया है और बड़े ही सुन्दर तरीके से इसका रख रखाव किया जा रहा है और रोजाना इसके पानी की सफाई की जाती है| कहते है की इस झालरे का जितना निर्मित भाग पानी के बाहर दिखाई देता है उससे ज्यादा पानी के अन्दर डूबा हुवा है जिसमे कलात्मक ढंग से पोलों का निर्माण किया हुवा है |
गुलाब राय जोधपुर के नरेश विजय सिंह जी की पासवान थी और अद्वितीय सुंदरी थी | कहते है की उस समय गुलाब का दबदबा पुरे मारवाड़ राज्य में था और उसका कहा ही राजा का फरमान हुवा करता था| गुलाब राय अत्यंत बुद्धिमती और गोकुलिये गुसाई की परम भक्त थी और उसने जोधपुर,सोजत और जालोर में अनेक निर्माण कार्य करवाए थे | जोधपुर में गुलाब सागर,महिला बाग़ झालरा  और उससे जुडा महिला बाग़ तथा कुंज बिहारीजी का मंदिर, गिरदी कोट, सोजत शहर का परकोटा और जालोर दुर्ग के कुछ भाग का भी निर्माण उसने करवाया था|
गुलाब राय के प्रभाव के कारण ही महाराजा विजय सिंह जी ने सम्पूर्ण मारवाड़ में पशु पक्षी वध पर पूर्णत निषेध लागू कर दिया था और जोधपुर में रहने वाले समस्त कसाइयो को राज्य छोड़ने अथवा पेशा बदलने पर मजबूर कर दिया था|तथा शराब की बिक्री और निर्माण पर भी पूर्णत रोक लगा दी थी|
गुलाब की सुन्दरता पर मुग्ध राजा अपनी अन्य रानियों और राजकुमारों से और राजपूत सरदारों  पूरी तरह से उदासीन हो गया था जिसके कारण १६ अप्रैल १७९२ को राजपूत सरदारों ने राज परिवार के सदस्यों से मिल  षड्यंत्र रच कर गुलाब की हत्या कर दी जिसके कारण महाराजा का भी दुःख के कारण एक वर्ष के भीतर ही स्वर्गवास हो गया|
जोधपुर के अन्य प्रमुख झालरों में तुअर जी का झालरा जिसे महाराजा अभय सिंह जी की पाटवी रानी बड़ी तुवंर  जी ने बनवाया था|, चांदपोल स्थित क्रिया कोट का झालरा जिसे शायद सन १७७ में सुखदेव तिवाड़ी ने बनवाया था| रियासतकालीन बावडिया, झालरे, कुवे, तालाब और जल प्रबंधन की अन्य तत्कालीन व्यवस्थाओं को देख कर कभी कभी ये लगता है की जल प्रबंधन के सन्दर्भ में आज  आमजन को और जलदाय विभाग के अभियंताओं को इन प्राचीन तकनीको से सीखना चाहिये की किस तरह बूंद बूंद जल को सहेजा जा सकता है और मरुस्थल में भी जहा वर्षो तक वर्षा नहीं होती थी इन जल संरक्षण संरचनाओं के कारण जीवन अबाध रूप से चलता था| जय जय
शरद व्यास, ०१-१०-१६, उदयपुर 










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