झालरापाटन का सूर्य मंदिर ( पद्मनाभ मंदिर )
राजस्थान के प्राचीन मंदिरों में से एक है झाल्ररापाटन का सूर्य मंदिर | कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण नाग भट्ट द्वितीय ने विक्रम संवत 872 में करवाया था तदनुसार इसका निर्माण ईस्वी सन 815 में हुवा होगा |इस मंदिर को पद्मनाभ मंदिर , बड़ा मंदिर, सात सहेलियों के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है| इस मंदिर को देख कर आपको कोणार्क के सूर्य मंदिर तथा खजुराहो के मंदिरों की याद आ सकती है|मंदिर का निर्माण सूर्य के रथ की भाति हुवा है जिसमे सात घोड़े जुते हुवे होते है उसी तरह इस मंदिर की आधारशिला भी सात घोड़े जुते हुवे जैसी मालुम होती है| मंदिर के गर्भ गृह में चतुर्भुज विष्णु भगवान की मूर्ति है| कर्नल जेम्सटॉड ने भी इसे चतुर्भुज मंदिर का नाम ही दिया था|
मंदिर में प्रवेश हेतु तीन तरफ से तोरण द्वार बने हुवे है | मध्य में मंडप है जो विशाल स्तंभों पर टिका हुवा है| स्तंभों पर की गई तक्षण कला अद्भुत है | मंदिर के गर्भ गृह के बाहर पीछे तीनो तरफ और मंदिर के शिखर पर उकेरी गई मुर्तिया हिन्दुस्तान के मंदिर स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है|मंदिर का शिखर भूमि तल से तक़रीबन 97 फीट ऊँचा है | सबसे अद्भुत है मंदिर के ऊपर चारो तरफ विराजित साधुओ की मुर्तिया, इन मूर्तियों का अंग विन्यास इतना सुन्दर है की ये मुर्तिया एकदम जीवंत लगती है ऐसा लगता है मानो सचमुच में कोई साधू माला फेर रहे हो | मूर्तियों के पाँव के अंगूठे और हाथो की उंगलिया देखने लायक है | मूर्तियों के केश विन्यास, जटा, पगड़ी और मुखाकृतिया भी एकदम सजीव मालुम पड़ती है |
मंदिर के बाह भाग में नायिकाओं की मुर्तिया इतनी मनमोहक और मादक भाव लिए हुवे है की आपको इनके संगतराशो पर हैरत होने लगती है की उन्होंने इस मंदिर की मूर्तियों को छेनी और हथोडी से बनाया या जादू से ? मंदिर के बाह्य भाग पर उकेरी गई नायिकाओं की मुर्तियो का सौन्दर्य आपको अभिभूत कर देता है | मुर्तिया का अंग सौष्ठव इतना नापा तुला बन पड़ा है और भाव भंगिमाए भी इतनी जीवंत है की आप को लगता है की शायद रात को ये सब जिन्दी हो जाती होगी | मंदिर के चारो तरफ सारा संसार उकेरा हुवा है मूर्तिकारो ने | शायद मूर्तिकार अपने प्राणों को ही प्रतिष्ठित करते होंगे मूर्तियों को बनाते समय|
सूर्य मंदिर के चारो तरफ बढ़ता दुकानों का अतिक्रमण और सब्जी मंडी इस भव्य मंदिर के लिए अत्यत नुकसानदायक है | वर्तमान में मंदिर देवस्थान विभाग के अधीन है|
मेरे हिसाब से एक अच्छे अलंकृत मंदिर को समझने का प्रयास किया जाए तो एक पूरा जीवन भी कम पड जाएगा|झालरापाटन के सूर्य मंदिर के बारे में भी यही कहा जा सकता है ये मंदिर और इसकी मुर्तिया इतने विषयों को अपने आप में समेटे हुवे है मानो अपने आप में पूरा संसार हो | ऐसा लगता है की मंदिर सिर्फ देव पूजा या अध्यात्म का केंद्र ही नहीं होगा वरन धर्म अर्थ काम मोक्ष जीवन के सभी पुरषार्थ का केंद्र होता होग||चित्तोडगढ के कीर्ति स्तम्भ की तरह ये मंदिर भी मूर्तियों का शब्दकोष है एक संग्रहालय है भारतीय मूर्ति शिल्प का | एक अलंकृत और पूर्ण मंदिर को बनाने का मतलब क्या होता होगा ? कैसे बने होंगे ये मंदिर ? कोटि कोटि नमन है इन्हें बनाने वालो को ... जय जय .....शरद व्यास
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