Wednesday, 6 December 2017

महामंदिर | जोधपुर का सबसे बड़ा मंदिर | Mahamandir | Jodhpur


महामंदिर - जोधपुर का सबसे बड़ा मंदिर 
अगर आप जोधपुर में महामंदिर का पता पूछेंगे तो जोधपुर में रहने वाला कोई भी निवासी आपको बता देगा ,मगर जब आप उससे मंदिर के बारे में पूछेंगे तो वो अपना सर खुजाने लग जाएगा|ये बड़ी विडंबना है की प्रत्येक शहर के कुछ प्राचीन स्थल के आस पास की बसावट उस स्थल से इतनी प्रसिद्द हो जाती है की मूल स्थल नेपथ्य में चला जाता है बस कुछ इक्का दुक्का पुराने लोग ही जानते है| मै भी जोधपुर का निवासी होने के बावजूद जब उसे देखने गया तो मुझे भी मशक्कत करनी पड़ी| जोधपुर में भी अनेक ऐसे एतिहासिक स्थान है जो समय के साथ भुलाए जा चुके है | 
कहते है की जब जोधपुर के महाराजा विजय सिंह जी का स्वर्गवास हुवा तो उनके स्थान पर उनका पौत्र भीम सिंह राजगद्दी पर बैठ गया और उसने अपनी गद्दी सुरक्षित करने के लिए राजगद्दी के सभी संभावित दावेदारों को मरवाना आरम्भ कर दिया| विजय सिंह के अन्य पौत्र मान सिंह ने भाग कर जालोर दुर्ग में शरण ली और अपनी जान बचाई और जालोर पर अधिकार कर स्वयं को मारवाड़ का शासक घोषित कर दिया| भीम सिंह ने अपने सेनापति अखेराज सिंघवी को दुर्ग पर घेरा डालने के लिए भेजा बाद में उसे सफलता प्राप्त न करते देख कर उसकी जगह इन्द्राज सिंघवी को सेनापति बना कर भेजा|भीम सिंह की सेना ने लगातार दस वर्षो तक दुर्ग के चारो तरफ सेना का घेरा डाले रखा|कहते है के जब आखिरकार सेना से बचने का कोई रास्ता न देख कर मान सिंह ने दुर्ग को छोड़ने का विचार किया तो जालंधर नाथ पीठ के योगी आयास देवनाथ ने उसे संदेसा भेजा की चार पांच दिन तक और रुक गए तो मारवाड़ के शासक बन जाओगे| मान सिंह जी ने आयास देवनाथ की बात मानकर चार दिन और भीम सिंह की सेना का प्रतिरोध किया| चार दिन बाद ही २१ अक्टूबर १८०३ को भीम सिंह की म्रत्यु हो गई और सेनापति इन्द्रराज सिंघवी मान सिंह जी को ससम्मान जोधपुर लाया और उसे मारवाड़ का महाराजा घोषित कर दिया| कृतज्ञ महाराजा मान सिंह जी ने अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुवे मेडती दरवाजे से थोडा आगे अपने गुरु आयास देवनाथ के लिए भव्य और विशाल मंदिर का निर्माण करवाया जो की अपनी भव्यता के कारण महामंदिर कहलाया|
इस मंदिर का निर्माण ९ अप्रेल १८०४ को प्रारम्भ हुवा और ४ फरवरी १८०५ को पूर्ण हुवा | इसके निर्माण में १० लाख रुपयों का व्यय हुवा था| मंदिर परिसर चारो और प्राचीर तथा चार विशाल दरवाजो का निर्माण किया गया था जो इसे एक दुर्ग का स्वरुप देता था| परिसर के मध्य मुख्य मंदिर, दो महल और एक बावड़ी और एक तालाब मानसागर का तथा नाथ योगियों के शमशान का निर्माण किया गया है| मुख्य मंदिर का विशाल दरवाजा और उसके ऊपर बने झरोखे के कारीगिरी देखते ही बनती है|मुख्य मंदिर के चारो तरफ विशाल कलात्मक छतरियो का निर्माण किया गया है जिनके गुम्बद पर नक्काशी का सुन्दर काम किया गया है और मुख्य द्वार के ऊपर बने झरोखों के अलावा तीनो तरफ झरोखों का निर्माण किया गया है| मुख्य मंदिर के सामने संगमरमर का सुन्दर सा तोरण द्वार बना हुवा है जो आपको मंदिर में ले जाता है| मंदिर एक ऊँची चोकी पर बना हुवा है जिस पर एक विशाल गुम्बद और गर्भ गृह का निर्माण किया गया है गर्भ गृह के चारो तरफ गुम्बद के नीचे उसे आधार देने के लिए ८४ खम्बे निर्मित है जिन पर बेहद सुन्दर कलाकारी की गई है| गर्भ गृह के अन्दर संगमरमर की चोकी पर लकड़ी के सुन्दर से सिहासन पर जालंधर नाथ जी की मूर्ति राखी गई है | जिसके चारो तरफ दीवार पर हैरत अंगेज सोने के पानी का कार्य किया गया है और दीवार पर ८४ योगासनों तथा प्रसिद्द नाथ सम्प्रदाय के योगियों के अद्भुत चित्र उकेरे गए है| गुम्बद के अन्दर चांदी का काम हुवा है|गर्भ गृह के बाहर भी दीवारों पर कलात्मक भित्ति चित्रों का निर्माण किया गया है जिनकी सुन्दरता सदिया बीत जाने के बाद भी अक्षुण्ण बनी हुई है|मंदिर परिसर में दो महलो का निर्माण किया गया था जिसमे से एक में नाथ महाराज स्वयं रहते थे और दूसरा नाथ योगियों की दिव्य आत्माओं के निवास के लिए बनाया गया था जिसमे आज भी एक भव्य सुसज्जित पलंग रखा हुवा है जिसके बारे में ये कहा जाता है की यह नाथ योगियों की आत्माए विश्राम करती है | मंदिर के अन्दर एक कुआ है जिसके बारे में कहा जाता है की उसका जल कभी नहीं सुखा और मारवाड़ के प्रसिद्द छप्पनिया अकाल में भी उसका जल नहीं सुखा था| मंदिर परिसर में महाराजा मानसिंह जी ने शिलालेख लगवाया था जिसमे लिखवाया गया था की जो भी इस मंदिर की शरण में आ जाता है उसके प्राणों की रक्षा करना मंदिर का कर्तव्य बन जाता है| कहते है की जिस भी व्यक्ति को मान सिंह जी प्राण दंड नहीं देना चाहते थे उसे इस मंदिर में भेज देते थे और जब अंग्रेज पदाधिकारी उस आदमी को पकड़ते तो उन्हें ये शीला लेख दिखा दिया जाता था और उनसे कहा जाता था की ये मंदिर की परंपरा है और अंग्रेज मन मसोस कर रह जाते थे|

महल के उपर एक विशेष छतरी का निर्माण भी किया गया था जिसमे खड़े होकर गुरु आयास देवनाथ महाराजा को प्रात काल में दर्शन देते थे और महाराजा अपने दुर्ग से उनके दर्शन लाभ करके ही अन्न जल ग्रहण किया करता था |महलो के खर्चे के लिए मंदिर को जागीर भी प्रदान की गई थी| मंदिर परिसर में नाथ योगियों के लिए बने शमशान में नाथ योगियों की छतरिया भी बनी हुई है|मंदिर के पास मान सागर तालाब बना हुवा है जिसमे महाराजा और आयास देवनाथ नौका विहार करते थे|
वर्तमान में मुख्य मंदिर में सरकारी विधालय संचालित होता है| समय के साथ मंदिर परिसर में और मुख्य मंदिर के चारो तरफ होने वाले बेतरतीब कब्जो के कारण और घनीभूत होती जनसंख्या के कारण मंदिर का स्वरूप ही बदल गया है और आज मुख्य मंदिर का मुख्य दरवाजा भी एक संकरी गली में स्थित है और मुख्य मंदिर के चारो कोनो में बनी छत्रिया जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुच गई है|मंदिर के पास बनी बावड़ी कचरे के कूड़ेदान में तद्बील हो चुकी है| मंदिर परिसर में बने महलों में कब्जो और किरायेदारो के कारण उनका मुख्य स्वरुप पूर्णत विलुप्त हो चूका है| ये मंदिर पूरी तरह से काल के गाल में समां जाए उससे पहले आप भी एक बार मंदिर तो हो आइये| जय गुरु जालंधर नाथ जी की, जय गुरु आयास देवनाथ जी की| जय जय ...................शरद व्यास, उदयपुर २८-०७-१६





































No comments:

Post a Comment