तुंवर जी का झालरा (बावड़ी) जोधपुर
जोधपुर की सबसे विशालकाय बावड़ी है तुंवर जी का झालरा जिसे विक्रम संवत १८०५ में जोधपुर नरेश अभय सिंह जी की पाटवी रानी बड़ी तुंवर जी ने बनवाया था जो की गुजरात के पाटन नरेश की पुत्री थी | यह विशाल बावड़ी जो की रास्ते के एक तरफ बनी हुई है और इसका प्रवेश, मुख्य मार्ग से ऊपर एक चबूतरे पर बना हुवा है इसलिए वहा से गुजरने वाले को दिखाई नहीं देती है किन्तु जब बावड़ी के बारे बताये जाने पर कोई व्यक्ति चबूतरे पर चढ़ कर इसे देखता है तो उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है|बावड़ी के चारो कोनो में छोटे छोटे प्रसाद बने हुवे है |बावड़ी में तीन तरफ से नीचे जाने के लिए त्रिभुजाकार सीढ़िया बनी हुई है जिनके मध्य बने हुवे आलय में शायद देवी देवताओं की मूर्ति विराजित होगी बावड़ी एक तरफ विशालकाय बुलंद दरवाज़े नुमा दिवार बनी हुई है जिसमे ऊपर प्रसाद बने हुवे है जिनके झरोखे बावड़ी की तरफ खुलते है और उनके नीचे की तरफ दोनों तरफ छोटे कक्ष बने हुवे है जिसमे बाहर की तरफ सुन्दर गोखडे बने हुवे है जिसमे नक्काशी का कार्य अत्यंत सुन्दर कार्य किया हुवा है | झालरे के तल की तरफ तीनो और गौ मुख बने हुवे है जिसमे से निरंतर भूमिगत जल का प्रवाह होता रहता है| जब आप इसमें नीचे जाए तो सावधानी अवश्य रखे क्योकि तीनो तरफ से निरंतर जल प्रवाह होने के कारण काई और शैवाल का जमाव हो चूका है जो बड़ा फिसलन वाला है| दरवाजे नुमा दीवार के ऊपर से जल निकालने के लिए रहट बना हुवा है जिसे वर्तमान में जाली द्वारा बंद कर दिया गया है| झालरे के ऊपर एक कृष्ण मंदिर बना हुवा है जो वर्तमान में शायद किसी की निजी सम्पति है |
वर्तमान में बावड़ी के चारो तरफ होटले और गेस्ट हाउस बने हुवे है और बावड़ी के ऊपर एक पीर बाबा की दरगाह भी बनी हुई है|इस बावड़ी में म्रत्यु के उपरान्त किये जाने वाले संस्कार किये जाते है|जोधपुर का निवासी होने के बावजूद मुझे इस विशालकाय बावड़ी के बारे में बिलकुल जानकारी नहीं थी | यह अमूल्य और एतिहासिक धरोहर जो की वाकई में देखने के लायक है ,प्रचार के अभाव में पर्यटकों के दर्शनीय स्थलों की सूचि में स्थान नहीं बना पायी है| मित्रो मेरा निवेदन है आप लोगो से की आप या आपके मित्र जब भी जोधपुर पधारे तो इस बावड़ी को अवश्य देखे ये बावड़ी हिन्दुस्तान की अन्य प्रसिद्द बावडियो से किसी भी सूरत में कमतर नहीं है | जय जय
शरद व्यास, ०२-१०-१६, उदयपुर
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