एलिफेंटा गुफाए | मुम्बई
काफी लंबे अर्से से इच्छा थी मुम्बई की एलिफेंटा गुफाओ को देखने की ,कई बार मुंबई गया मगर एलिफेंटा गुफाए नहीं देख पाया और जब इस बार देखा तो अवाक रह गया| मुझे ऐसा लगा मानो चर्च गेट से फेरीनुमा टाइम मशीन के एक घंटे की यात्रा में मै इक्कीसवी सदी के शहर मुंबई से मौर्योतर काल की सातवी सदी में आ गया हूँ|
एलिफेंटा गुफाओ का नाम पुर्तगालियो ने इन गुफाओं में मिली विशाल प्रस्तर हाथी की प्रतिमा के कारण रखा था| हाथी की मूर्ति वर्तमान में विक्टोरिया म्यूजियम के बाहर रखी गई गई है|
एलिफेंटा गुफाओ को किसने बनाया ? कब बनाया ? इस बारे कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है| इतिहासकारों के अनुसार इस क्षेत्र का प्राचीन नाम धारापुरी था तथा इन गुफाओं का निर्माण सातवी शताब्दी से नवी शताब्दी के मध्य हुवा है| कुछ इतिहास कारो के अनुसार इन्हें मौर्योतर काल में निर्मित हुई माना जा सकता है संभवत वाकाटक कालीन अथवा कलचुरी शासको के काल में बनी हुई है|
फर्गुसन, बर्जेस तथा जिम्मर जैसे विद्वान् पुरातत्ववेताओ ने मूर्तियों के लक्षणों के आधार पर इन्हें आठवी -नवमी शताब्दी में निर्मित माना है वाही हीरानंद शास्त्री तथा डा प्रमोद्चंद्र इन मूर्तियों को सातवी सदी में निर्मित होना मानते है, क्योकि इनके निर्माण में कोंकण के मौर्य शासको का योगदान है (भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास-डा रीता प्रताप)
इतिहासकारों के मतानुसार इन गुफाओं का निर्माण कोंकण के शिलाहारी शासको ने करवाया था जो की तत्कालीन राष्ट्रकूट शासको के सामंत थे|
इन गुफाओं के कालक्रम के सम्बन्ध में चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय (634-35 इसवी)के समय का एक शिलालेख प्राप्त हुवा है जिसमे इस क्षेत्र को पुरी के रूप में उल्लेखित करते हुवे इसे अपने जहाजी बेड़े द्वारा पुरी के कोंकण के मौर्य शासको को पराजित करने का उल्लेख पुलकेशिन द्वितीय द्वारा किया गया है| पुलकेशिन द्वितीय हर्षवर्धन तथा पल्लव महेन्द्रवर्मन प्रथम का समकालीन था जिससे इन गुफाओं के सातवी सदी में निर्मित होने का अनुमान लगाया जाता है| तत्कालीन समय में स्थापत्य कला का अत्याधिक विकास हुवा था और उसे भारतीय स्थापत्य कला स्वर्णिम काल भी कहा जा सकता है|
मुंबई के गेटवे ऑफ़ इण्डिया से लगभग ग्याराह किलोमीटर दूर टापू पर बनी हुई इन गुफाओं में जाने के लिए आपको गेटवे ऑफ़ इंडिया से फेरी मिलती है जिसका वर्तमान में प्रति व्यक्ति दौ सो रुपये किराया है| फेरी का गेटवे ऑफ़ इण्डिया से एलीफैंटा तक के सफ़र का एक अलग ही रोमांच है| विशाल अरब सागर में टापू की तरफ जाते हुवे गेटवे ऑफ़ इण्डिया और ताज होटल की दोनों भव्य इमारतो का नजारा देखने लायक होता है आपके चारो तरफ विशाल समुद्र में तैरते हुवे बड़े बड़े जहाज और स्टीमबर बड़े खुबसूरत लगते है| एक घंटे के सफ़र में आपका साथ देती है सी गल चिड़ियाए जो आपको एस्कॉर्ट करती हुई और पुरे रास्ते में मनोरंजन करती हुई आपको एलिफेंटा की गुफाओं तक छोड़ कर आती है| अगर मौसम अच्छा हो और आप फोटोग्राफी के शौक़ीन हो तो फेरी की ऊपर वाली छत पर ही बैठे|
एलिफेंटा टापू पर जब फेरी पहुँचती है और अगर भीड़ ज्यादा है तो फेरी वालो का यात्रियों को टापू पर उतारने का प्रबंध भी काबिले गौर है सारे फेरी वाले अपनी फेरियो को एक दुसरे से सटा कर एक फेरी मार्ग बना लेते है और सारी फेरियो के यात्री एक फेरी से दूसरी में होते हुवे बंदरगाह पर जाते है| एक पतले लंबे तटीय मार्ग से होते हुवे यात्री गुफा मार्ग की सीढ़ियों तक पहुँचते है| एक टॉय ट्रेन भी इस मार्ग पे चलती है जो बच्चो और बुजुर्गो के लिए आकर्षण और बड़ी उपयोगी है| कई सारी सीढ़िया चढ़ कर जिनके दोंनो तरफ पूरा बाजार बना हुवा है आप गुफा के मुख्य द्वार पर पहुँचते है|
शैव धर्म के उपासक शासको द्वारा बनाई गई इन गुफाओं में आपको शिव के विभिन्न रूपों और मुद्राओं की अद्भुत मुर्तिया देखने को मिलती है और शायद सम्पूर्ण भारत के अनेक मंदिरों और प्रसादों में जो की परवर्ती काल में बने है इन्ही मूर्तियों की अनुकृतिया बनाई गई प्रतीत होती है|
मुख्य गुफा में विशालकाय स्तंभों पर स्थिर वर्गाकार हाल है जिसके दोनों तरफ खुले अहाते है जिनमे पुन गुफाए में मंदिर बने हुवे है | मुख्य गुफा के दाहिनी तरफ चारो तरफ प्रवेश द्वार युक्त शिवालय बना हुवा है जिसमे विशालकाय शिवलिंग स्थापित है तथा शिवालय के चारो तरफ स्थित प्रवेश द्वारों के दोनों तरफ विशालकाय द्वारपालों की मूर्तियों का शिल्पांकन किया गया है |
मुख्य गुफा में प्रवेश करते ही बायीं और फलक पर शिव की पद्मासन की मुद्रा शिल्पांकित की गई है | शिल्पांकन इतना अलंकृत तथा अद्भुत है की आप उससे नजर ही नहीं हटा सकते है| ध्यानमग्न प्रतिमा के मुख पर असीम शान्ति और ओज का भाव व्यक्त है सर पर मुकुट धारण किया गया है तथा परिकर में ब्रम्हा,सूर्य,इंद्र तथा विभिन्न देवी देवताओ को उकेरा गया है|
एलिफेंटा गुफाओ के बारे में कहा जाता है की पुर्तगालियो ने इन गुफाओं का उपयोग भण्डार के रूप में किया था वे यहाँ पर पशुओ का चारा, लुट की सामग्री और रसद रखा करते थे| स्थानीय निवासियों के अनुसार पुर्तगालियो ने ही इन गुफाओं की मूर्तियों को नष्ट किया था|
मुख्य द्वार के दाई और फलक पर शिव की तांडव नृत्य करती हुई मूर्ति उकेरी हुई है| अष्टभुजा युक्त इस मूर्ति की सबसे ख़ास बात ये है की तांडव नृत्य करते हुवे शिव के मुख पर जो तनाव अथवा क्रोध का भाव होना था वो नहीं होकर एक शान्ति एवं निर्विकारिता का भाव व्यक्त किया गया है| खंडित होने के बावजूद मूर्ति की लय और गति की उर्जा को महसूस किया जा सकता है| मूर्ति के दोनों तरफ विभिन्न देवी देवता यथा ब्रम्हाजी,गणेश जी,पार्वती जी,इंद्र देव, भृंगी ऋषि आदि को उकेरा गया है|
अन्धक राक्षस का वध करते हुवे - ऊपर के फोटोग्राफ में गुफा के दाहिनी तरफ खुले अहाते से पहले दीवार पर बने फलक पर उकेरी गई मूर्ति में शिव को अन्धक राक्षस का संहार करते हुवे दर्शाया गया है| पहले मैंने इस मूर्ति को काली माता की मूर्ति समझा मगर वहा खड़े एक सज्जन ने बताया की ये अन्धक राक्षस का संहार करते हुवे शिव के रौद्र रूप को दर्शाया गया है| मूर्ति में शिव की आँखे और दांत बाहर की तरफ निकले हुवे दर्शाया गया है जिससे मुख अत्यत भयावाह बन पड़ा है| दोनों तरफ देवी देवता मानो शिव की स्तुति कर रहे हो तथा उनके क्रोध को शांत करने का प्रयास कर रहे हो ऐसा उकेरा गया है|
एलिफेंटा गुफा की मुख्य मूर्ति भगवान् शिव की त्रिमुखी स्वरुप की है| त्रिमुखी मूर्ति भारतीय मूर्तिकला की सबसे प्रसिद्द मूर्तियों में से एक है| त्रिमूर्ति में सत्व,रज,तम त्रिगुण का संयोजन दर्शाया गया है| हिन्दू दर्शन में श्रृष्टि के रचियता,पालनकर्ता, संहारक के रूप में त्रिदेव ब्रम्हा,विष्णु, महेश की संकल्पना की गई है,त्रिमुखी शिव की मूर्ति में इन तीनो स्वरूपों को दर्शाया गया है| मूर्ति भग्न होने के बावजूद अत्यंत अलंकृत तथा भव्य है जो तत्कालीन स्थापत्य कला के स्वर्णिम युग का ध्योतक है|
त्रिमुखी मूर्ति में मध्य मुख कल्याणकारी शिव का है जिसे मुकुट तथा जटाओ से दर्शाया गया है| मुख पर असीम शान्ति तथा ध्यानिस्थ मुद्रा व्यक्त की गई है मूर्ति का मुख भरा भरा सा,चौकोर ठुड्डी तथा निचे वाला होठ अपेक्षाकृत मोटा उकेरा गया है| प्रसिद्द लेखिका स्टेला क्रेमरिश ने इस मूर्ति के तीनो मुखो में तत्पुरुष रामदेव के अघोरी लक्षणों की अभिव्यक्ति स्वीकार की है (भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास-डा रीता प्रताप)
मुख्य गुफा की मुख्य त्रिमुखी मूर्ति के बायीं तरफ शिव के अर्धनारीश्वर स्वरुप को दर्शाया गया है जिसमे शिव का आधा दाई तरफ का भाग नारी के रूप में है जिसमे स्त्रीजन्य लावण्यता शिल्पांकित की गई है तथा बायीं तरफ के पुरुषोचित भाग में तनाव दर्शाया गया है| शिव नदी बैल के सहारे बैठे हुवे है तथा सभी देवी देवताओं यथा ब्रम्हाजी,विष्णुजी,कार्तिकेय आदि को उनके दोनों तरफ शिल्पांकित किया गया है|
शिव गंगाधर रूप में - गुफा के एक फलक में (ऊपर दिए फोटोग्राफ में ) शिव को गंगा नदी को अपनी जटाओ में धारण करते हुवे शिल्पांकित किया गया है| पास ही पार्वती को अप्रसन्न दिखाया गया है जो गंगा के रूप में शिव द्वारा एक और स्त्री को अपनी जटाओ में धारण करने के कारण क्रोधित है| ऊपर गंधर्व और अप्सराओं को उड़ते हुवे उकेरा गया है|
रावण कैलाश पर्वत उखाड़ते हुवे -गुफा के एक फलक पर रावण द्वारा कैलाश पर्वत को उठाने के पौराणिक आख्यान को शिल्पांकित किया गया है जिसमे शिव के बाए पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबाते हुवे दर्शाया गया है तथा पार्वती तथा अन्य देवी देवताओं को भी उकेरा गया है |
मुख्य गुफा के पास बायीं और खुले अहाते के सामने बने गुफा मंदिर के पार्श्व में बने कक्ष में गणेश जी की बैठी हुई विशालकाय मूर्ति को शिल्पांकित किया गया है तथा गणेश जी के दोनों तरफ देवी देवताओं और ऊपर गंधर्व तथा अप्सराओं को उकेरा गया है|
शिव मंदिर के बाहर दोनों तरफ द्वारपाल के रूप में बैठे हुवे सिंहो का
शिल्पांकन अद्भुत है| बायीं तरफ के सिंह का मुख भग्न हो चूका है |
शिव पार्वती विवाह - मुख्य गुफा में एक फलक पर शिव पार्वती विवाह का शिल्पांकन किया गया है | शिल्पांकन की जितनी तारीफ़ की जाए वो कम है शिव और पार्वती दोनों की मुख मुद्रा पर स्पष्ट रूप से हर्ष एवं उल्लास का भाव व्यक्त हो रहा है | पार्वती के पिता हिमवान अपनी पुत्री का हाथ शिव के हाथ में सौप रहे है तथा शिव पार्वती दोनों की भाव भंगिमाओ में स्वीकृति तथा समर्पण का भाव उकेरा गया है | इस शिव पार्वती विवाह (कल्याण सुन्दर मूर्ति ) को परवर्ती काल में अनेक मंदिरों तथा प्रसादों में शिल्पांकित किया गया है |
जय जय .....
शरद व्यास
चित्तौडगढ
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