कुंडेश्वर महादेव मंदिर - उदयपुर
मेवाड़ की भूमि देवभूमि है यहाँ आपको हर थोड़ी दूर पर एक
मंदिर दिखाई दे जाता है|यहाँ के मंदिरों
में लगे शिलालेखो ने यहाँ के इतिहास को सूत्रबद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई है|उदयपुर से इसवाल जाने
वाले राष्ट्रीय राजमार्ग में घसियार के श्रीनाथजी मंदिर के सामने जाने वाले मार्ग
में किशनियावाड गाँव तथा खुमानपुरा गाँव के आगे कुंडा ग्राम में कुंडेश्वर महादेव
का मंदिर है| सम्पूर्ण मंदिर एक विशाल
बरगद के वृक्ष की शाखाओं से आच्छादित है|इतने विशाल बरगद को आज के युग में
देखना भी एक सुखद अनुभूति है| बारिश के दिनों में ये स्थान यहाँ बहने वाले झरने के कारण उदयपुर वासियों के लिए प्रमुख पिकनिक स्पॉट बन जाता है|
कुंडेश्वर मंदिर से एक किलोमीटर पहले किशनियावाड गांव में एक प्राचीन विष्णु जी का मंदिर भी है जिसके निर्माण से संबंधित गुहिल शासक अपराजित से सम्बंधित सातवी सदी (661 इसवी) का एक शिलालेख इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा को
प्राप्त हुवा था जिसे उन्होंने उदयपुर के विक्टोरिया हाल के संग्राहालय में रखवाया
था|जिसका सारांश ओझा साब के अनुसार “ गुहिल वंश के तेजस्वी
राजा अपराजित ने सब दुष्टों को नष्ट किया और अनेक राजा उसके आगे सर झुकाते थे|उसने शिव (शिव सिंह) के पुत्र महाराज वराहसिंह को जिसकी
शक्ति कोई नहीं तोड़ सका,जिसने भयंकर शत्रुओ को परास्त किया और जिसका उज्जवल दसो
दिशाओं में फैला हुवा था अपना सेनापति बनाया|अरुंधती के सामान विनाय वाली उस (वराह
सिंह) की स्त्री यशोमती ने लक्ष्मी, यौवन और वित्त को क्षणिक मान कर संसार रूपी
विषम समुद्र को तैरने के लिए नावृपी कैटभरिपु (विष्णु) का मंदिर बनवाया|दामोदर के पौत्र और ब्रम्हचारी के पुत्र दामोदर ने उक्त
प्रशस्ति की रचना की, और अजित के पौत्र तथा वत्स के पुत्र यशोभट ने उसे खोदा| डा ओझा के अनुसार इस लेख की कविता बड़ी मनोहर है और उसकी
कुटिल लिपि को लेखक ने ऐसा सुन्दर लिखा, और शिल्पी ने इतनी सावधानी से खोदा है की
वह लेख छापे में छपा हो, ऐसा प्रतीत होता है|
डा श्री कृष्ण जुगनू जी ने भी अपनी पुस्तक मेवाड़ का
प्रारम्भिक इतिहास में कुंडेश्वर मंदिर से प्राप्त प्रशस्ति का मूल संस्कृत पाठ
तथा उसका अनुवाद दिया है| डा श्री कृष्ण
जुगनू जी के अनुसार सातवी सदी में निर्मित विष्णु मंदिर के लगभग पांच सौ वर्ष बाद बारहवी
सदी में कुंडेश्वर शिव मंदिर का निर्माण हुवा था| कुुंडेश्वर शिव मंदिर, विष्णु मंदिर से एक किलोमीटर आगे स्थित है। कुंडेश्वर मंदिर का निर्माण किसने करवाया? कब करवाया? इस संबंध में इतिहास मुझे प्राप्त नही हुवा।
कुंडेश्वर महादेव मंदिर में तीन प्रवेश द्वार युक्त मंडप है
तथा गर्भ गृह में विशालकाय शिवलिंग प्रतिष्ठित है| वर्तमान में जीर्णोधार के कारण मंदिर का मूल स्वरुप बदल चूका है| मंदिर के सामने ही बरगद के नीचे नंदी विराजित है तथा उसके
पीछे गणेश जी की प्रतिमा रखी हुई है|तथा पेड़ के दूसरी तरफ प्राचीन भग्न
शिवलिंग रखा हुवा है| मुख्य मंदिर के पास ही
एक जलकुंड रहा होगा जिसे पाट कर यज्ञ वेदी का स्वरुप दे दिया गया लगता है| समीप ही एक छोटा शिव मंदिर तथा दो चबूतरे पर बने शिवलिंग
है| मंदिर के पास ही एक नदी है जिसे स्थानीय निवासी गंगा नदी
का स्वरुप मानते है तथा बड़े चाव से माँ गंगा का उस गाँव में प्रगट होने से
सम्बंधित लोक कथा सुनाते है| विशाल बरगद से
आच्छादित इस अद्भुत मंदिर तथा उसके चारो तरफ पसरे नैसर्गिक सौन्दर्य को तथा अलौकिक
शान्ति तथा पास में बहने वाली गंगा नदी आपको मंत्रमुग्ध कर देती है और ऐसा लगता है
तेरह सौ वर्ष से अनेको साधू संतो के निरंतर पूजा पाठ के कारण ये स्थान सिद्ध हो
चूका है| भगवान् वाकई में यहाँ
निवास करते है|
जय जय ......शरद व्यास
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