चित्तौड़गढ़ पर अकबर का आक्रमण -25 फरवरी 1568
24 फरवरी 1568 को रात को चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कई हवेलियो से धधकती अग्नि की ज्वाला को देखकर दुर्ग का घेरा डाले हुवे मुगल सम्राट अकबर को बड़ा ही विस्मय हुवा तो आमेर के राजा भगवान दास ने बताया कि जब राजपूत मरने का निश्चय कर लेते है,तो अपनी स्त्रियों और बच्चो को जौहर की अग्नि में जलाकर शत्रुओ पर टूट पड़ते है,इसलिए अब सावधान हो जाना चाहिए कल किले के दरवाजे खुलेंगे।
25 फरवरी 1568 को सुबह होते ही केसरिया बाना ओढ़े राजपूत रणबांकुरो ने मुग़ल सेना पर हमला कर दिया। राजपूतो और मुगलो की सेनाओं में घनघोर युद्ध हुवा जिसमे महाराणा उदयसिंह के सरदारो ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुवे मेवाड़ के इतिहास के पन्नो में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों से दर्ज कर लिया। इस यद्ध में वीरगति प्राप्त करने वाले प्रमुख सरदारों का विवरण गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने अपनी पुस्तक उदयपुर का इतिहास में दिया है।
जयमल जी राठौर जिन्हें महाराणा उदय सिंह ने मेड़ता से उदयपुर आने पर बदनोर की जागीर प्रदान की थी युद्ध के दौरान दुर्ग की चौकसी करते हुवे पांव पर अकबर की बंदूक से गोली लगने से घायल हो गए थे मगर युद्ध के दौरान घायल के बावजूद जब उन्होंने युध्द की इच्छा व्यक्त की तो उनके भतीजे कल्लाजी राठौर ने उन्हें अपने कंधे पर बैठा लिया और चाचा भतीजे ने चतुर्भुज स्वरूप में इतना प्रचण्ड युद्ध किया और मुगल सेना में इतनी मारकाट मचाई की अकबर भी उनकी वीरता पर मंत्र मुग्ध हो गया था और युद्ध के बाद में उसने आगरा के किले के दरवाजे के बाहर हाथी पर बैठी आदमकद मुर्तिया लगवाई थी जिन्हें औरंगजेब ने हटवा दिया था।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के हनुमान पोल और भैरव पोल के मध्य जंहा ये दोनों वीरगति को प्राप्त हुवे थे उनकी छतरिया बनी हुई है जिसमे चार स्तम्भो वाली छतरी कल्लाजी की है और छह स्तम्भो वाली छतरी जयमलजी की है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के किलेदार पत्ताजी चुण्डावत ने दुर्ग के रामपोल पर यद्ध में बड़ी वीरता दिखाई और एक हाथी ने उन्हें सूंड में उठाकर पटक दिया। जंहा उन्होंने वीरगति प्राप्त की थी उनकी छतरी बनी हुई है।
ईसरदास चौहान ने युद्ध मे वीरता दिखलाते हुवे अकबर के हाथी की सूंड में खंजर घोपा और गुणग्राहक बादशाह को मुजरा पहुचाया। ( पूर्व में अकबर ने ईसरदास को बड़ी जागीर का प्रलोभन देते हुवे उन्हें मुगल खेमे में शामिल होने के लिए कहा था जिस पर ईसरदास ने कहा कि मैं समय आने पर आपके समक्ष उपस्थित होकर मुजरा (अभिवादन) करूँगा)
डोडिया सांडा युद्ध करते हुवे गम्भीरी नदी के पश्चिमी किनारे पर वीरगति को प्राप्त हुवे।
युद्ध मे वीरगति प्राप्त करने वाले अन्य प्रमुख सरदारों में रावत साईंदास, राजराणा जैता सज्जावत, राजराणा सुल्तान आसावत, राव संग्राम सिंह, रावत साहिबखान ,राठौड़ नेतसी आदि थे। दुर्ग के सूरजपोल दरवाजे के दोनों तरफ रावत साईंदास और राजराणा सुल्तान आसावत के स्मारक बने हुवे है।
1568 में हुवे युद्ध मे मुगल सम्राट से युद्ध मे राजपूत सरदारों ने राष्ट्रभक्ति, स्वामी भक्ति और राजपूती शौर्य की वो मिसाल कायम की है के आज भी जब हम चित्तौड़गढ़ दुर्ग के इन दरवाजो से प्रवेश करते है तो स्वत: ही इन वीर योद्धाओ के स्मारकों के समक्ष श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते है।
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