राघवदेवजी का स्मारक - चित्तौड़गढ़ दुर्ग
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के अन्नपूर्णा माता मंदिर परिसर में बाण माता मंदिर के समीप स्थित है महाराणा लाखा के छोटे पुत्र और चुंडा जी के अनुज राघवदेव जी का स्मारक। लोक मान्यता के अनुसार जब राठौड़ रिड़मल ने अपनी छोटी बहन हंसादेवी का रिश्ता महाराणा लाखा के युवराज चुंडा के लिये भिजवाया तो महाराणा ने हंसी ठिठोली करते हुवे कहा कि अब जवानों के लिए ही विवाह के प्रस्ताव आएंगे हम जैसे वृद्धो को कौन विवाह के प्रस्ताव भेजेगा। ये बात युवराज चुंडा जी को खटक गई और उन्होंने राव रिड़मल को हंसाबाई का विवाह अपने पिता से करने के लिये विनती की किन्तु राव रिड़मल ने ये कहते हुवे चुंडा जी का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया की आप तो युवराज है महाराणा के बाद आप महाराणा बनेंगे मेरी बहन से उत्पन्न हुई संतान तो सामंत बन कर आपकी चाकरी करेगी।
तब पितृभक्त चुंडाजी ने राव रिड़मल को आश्वस्त करते हुवे प्रतिज्ञा की की आपकी बहन से उत्पन्न संतान ही मेवाड़ का स्वामी होगा और मैं उसका संरक्षक बन कर रहूंगा। चुंडाजी के वचन पर रिड़मल ने अपनी बहन का विवाह महाराणा लाखा से कर दिया। हंसाबाई से उत्पन्न महाराणा लाखा के पुत्र मोकल को दिए वचन अनुसार चुंडा जी ने महाराणा बनवाया किन्तु मेवाड़ की प्रजा में चुंडाजी की लोकप्रियता को देखते हुवे सशंकित हंसाबाई और राव रिड़मल ने चुंडा जी को मेवाड़ छोड़ कर जाने के लिए कहा। क्षुब्ध चुंडाजी अपने छोटे भाई राघवदेव को मोकल की सुरक्षा का भार देकर मांडू चले गए।
बाद में महाराणा लाखा के पासवान पुत्रो चाचा मेरा ने मोकल की हत्या कर दी और राव रिड़मल ने उनकी हत्या कर अपने भांजे मोकल की हत्या का बदला लिया और मोकल के पुत्र कुम्भा महाराणा बने। कुम्भा के महाराणा बनते ही रिड़मल ने मेवाड़ में अपना प्रभाव बढ़ाना प्रारम्भ किया और महत्वपूर्ण पदों पर मारवाड़ के राठोड़ो को नियुक्त करने लगा जिसका विरोध मेवाड़ के सरदारों और कुम्भा के चाचा राघवदेव ने किया और महाराणा कुम्भा को रिड़मल के मेवाड़ में बढ़ते प्रभाव को लेकर चेताया। मेवाड़ में राघवदेव की लोकप्रियता और राज्य में उनका प्रभाव रिड़मल को अपने मार्ग में कांटे की तरह चुभ रहा था और उसने उन्हें अपने मार्ग से हटाने के लिए अन्नपूर्णा माता मंदिर में नियमित रूप से दर्शन के लिए आने वाले राघवदेवजी को रिड़मल ने धोखे से मन्दिर में नया वस्त्र भेट किया जिसकी बाहे आगे से सिली हुई थी और राघवदेव जी के उसे पहनते समय रिड़मल ने तलवार के वार से राघवदेवजी की हत्या कर दी। राघवदेवजी की स्मृति में मंदिर परिसर में ही उनकी छतरी (समारक) बनवाया गई। बाद में चुंडा जी ने मांडू से मेवाड़ आकर राव रिड़मल को मरवा कर अपने भाई की हत्या का बदला लिया था ।
मेवाड़ राजवंश द्वारा राघवदेवजी की पितृदेव के रूप में अर्चना की जाती है।
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