अन्नपूर्णा माता मंदिर - चित्तौड़गढ़
चित्तौड़गढ़ दुर्ग के आबादी क्षेत्र में स्थित इस मंदिर परिसर में अन्नपूर्णा माता का मंदिर, बाणमाता का मंदिर, महाराणा लाखा के पुत्र राघवदेव का स्मारक है।
अन्नपूर्णा माता मंदिर के संबंध में कविवर श्यामलदास दधिवाडिया द्वारा रचित वीर विनोद के अनुसार अल्लाउद्दीन खिलजी के 1303 में चित्तौड़गढ़ पर अधिकार कर लेने तथा रावल रतनसेन के साथ रावल वंश के समाप्त हो जाने के बाद केलवाड़ा के समीप सिसोदे गांव के बहादुर कुलाभिमानी राणा हम्मीर चित्तौड़गढ़ पर वापस अधिकार करने का प्रयास कर रहे थे। एक बार जब राणा हम्मीर अपने साथियों के साथ द्वारिकापुरी गये तो मार्ग में गुजरात क्षेत्र के कच्छ जिले के भचाऊ तहसील के #खोड़गांव में पड़ाव डाला। खोड़ गांव चारणों की जागीर के अंतर्गत था।खोड़ गांव के चखडाजी चारण की पुत्री बिरवड़ी जी के चमत्कारों की बड़ी प्रसिद्धि थी उन्हें देवी का अवतार माना जाता था। राणा हम्मीर उनके दर्शनार्थ उनके समक्ष उपस्थित हुवे तो बिरवड़ी माता ने हम्मीर की चित्तौड़गढ़ पर अधिकार प्राप्त करने की मंशा जानकर उन्हें चित्तौड़गढ़ विजित करने का आशीर्वाद दिया तथा हम्मीर और उनके सभी साथियों को पांच पकवान युक्त भोजन करवाया बाद में अपने पुत्र बारू चारण के साथ पांच सौ घोडे भेज सहायता की।
राणा हम्मीर के बढ़ते प्रभाव को देखकर #अल्लाउद्दीनखिलजी द्वारा चित्तौड़गढ़ के किलेदार के रूप में नियुक्त सोनगरा चौहान मालदेव ने अपनी पुत्री का विवाह हम्मीर से कर दिया तथा अनेक गांव दहेज में प्रदान किये।
डॉ गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार मालदेव की मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र जैसा के शासनकाल के दौरान हम्मीर ने अपने मंत्री मौजीराम मेहता (जो कि पहले सोनगरा मालदेव के मंत्री थे) की सहायता से चित्तौड़गढ़ दुर्ग के पर अधिकार कर लिया।
दुर्ग पर अधिकार करने के उपरांत राणा हम्मीर ने सम्मानपूर्वक बिरवड़ी जी को खोड़ से चित्तौड़गढ़ बुलाया तथा वही रखा और उनके पुत्र #बारुचारण को जागीर प्रदान की तथा अपना प्रमुख सहयोगी बनाया।
महाराणा हम्मीर ने बिरवड़ी जी की स्मृति में दुर्ग में स्थित प्राचीन महालक्ष्मीजी के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया तथा अन्नपूर्णा माता के नाम से नामांकरण किया तथा पास में विशाल जलकुंड का निर्माण करवाया जिसे अन्नपूर्णा जी के कुंड के नाम से जाना जाता है। #सन1326 से अन्नपूर्णा माता की पूजा मेवाड़ के #सिसोदिया राजवंश परिवार द्वारा अपनी इष्टदेवी के रूप में की जा रही है।
इस प्राचीन मौर्यकालीन मूलतः #गजलक्ष्मी के मंदिर के गर्भगृह में स्थित अन्नपूर्णा माता की वर्तमान मूर्ति की मुखाकृति चारणों की कुलदेवियों के अनुरूप ही है। गर्भगृह की विशेषता उसके दो द्वार है जिसमे अंदर वाला द्वार मूर्ति के माप से अपेक्षाकृत छोटा है जिसके कारण कोई भी मूर्ति को वहा से नही निकाल सकता है। अंतराल में बनी हुई दोनों तरफ की ताको में महिषासुरमर्दनी की तथा गणेश जी की प्राचीन मूर्ति विराजित है। तथा प्राचीन लेख खुदा हुवा है जो संभवत मंदिर के जीर्णोद्धार से संबंधित है।सभामंडप की छत में अप्सराओ की सुंदर मुर्तिया शिल्पांकित की गई है। मंडप के स्तम्भो पर भी कुछ लेख खुदे है जो संभवतः जीर्णोद्धार के दौरान कार्य करने वाले कारीगरों के नाम है। मंदिर के सम्मुख एक विशाल सिंह की बैठी हुई प्रतिमा है। जिसके दोनों तरफ त्रिशूल लगे हुवे है। मंदिर की बाह्य दीवारों पर पार्श्व में #गजलक्ष्मी की कमल पुष्प पर विराजिर प्राचीन दो प्रतिमाये शिल्पांकित है जिनमे लक्ष्मी जी के ऊपर दो तथा पार्श्व में दो कुल चार हाथी अंकित है जो सूंड में पकड़े घडो से जलाभिषेक कर रहे है। नीचे दो गण बने हुवे है जिनके हाथो में अक्षय निधि पात्र है जो भरे हुवे है और एक गण द्वारा निधि उड़ेली जा रही शिल्पांकित है। #गजलक्ष्मी माता के एक हाथ मे कमल पुष्प है तथा दूसरे हाथ मे अक्षय निधि है।
वर्तमान में मंदिर के पुजारी श्री प्रभुलाल पालीवाल तथा उनके पुत्र श्री मुकेश पालीवाल दर्शनार्थियों को बड़े चाव से मंदिर के इतिहास के बारे में बताते है । उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इस मंदिर की पूजा अर्चना करता आया है।
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