चन्द्रभागा के मंदिर -झालरापाटन Chandrabhaga Temples - Jhalrapatan
मित्रो आज जहा झालरापाटन बसा हुवा है वहा कभी अनेको मंदिरों
वाली प्राचीन दिव्य नगरी हुवा करती थी| जिसे कुछ इतिहासकारों ने चन्द्रावती नाम भी दिया है|वर्तमान झालरापाटन नगर से
तक़रीबन एक किलीमीटर दूर चंद्रभागा नदी के किनारे बने घाट पर स्थित प्राचीन मंदिर
आज भी उस प्राचीन नगरी के प्रमाण है| यंहा से प्राप्त मौर्यकालीन
पंचमार्क सिक्के इस बात के गवाह है की ये स्थल ईसा पूर्व भी अस्तित्व में था| हालांकि इस बात का वर्तमान में कोई स्पष्ट प्रमाण प्राप्त नहीं होता है| वर्तमान में जो मंदिरों के अवशेष प्राप्त होते है
वो सातवी सदी तथा उसके बाद के है|
यंहा स्थित प्राचीन मंदिरों को किसने बनाया इस बारे
में अनेक मत है किन्तु कोई भी प्रमाणिक तथ्य प्राप्त नहीं है मंदिर के निर्माण की
सबसे ज्यादा प्रचलित मान्यता ये है की मालवा वर्तमान में मध्यप्रदेश के शासक
चंद्रसेन जो की प्रसिद्द शासक विक्रमादित्य के पुत्र थे एक बार सपत्निक तीर्थाटन
कर जब यहाँ से गुजर रहे थे तब उनकी धर्मपत्नी को यही प्रसव पीड़ा हुई और उन्होंने
एक पुत्र को जन्म दिया| राजा चंद्रसेन ने कृतज्ञपूर्ण होकर यहाँ मंदिर का
निर्माण करवाया| यहाँ स्थित एक अन्य मंदिर में स्थित एक प्राचीन
शिलालेख है जो 692 इसवी का है|
वर्तमान में चंद्रभागा नदी किनारे शेष बचे हुवे इन
पांच-छह मंदिरों के चारो तरफ एक चारदिवारी बना कर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग
द्वारा उनके संरक्षण का कार्य किया गया है| परिसर में स्थित इन मंदिरों
में सबसे प्रमुख और विशाल मंदिर है शितलेश्वर महादेव अथवा चन्द्रमौलिश्वर भगवान्
का मंदिर जिसका सभामंड़प 26 स्तंभों द्वारा निर्मित है जिन पर अद्भुत शिल्पांकन का
कार्य किया हुवा है| कुछ स्तंभों पर शिलालेख भी अंकित है| मंदिर से प्राप्त शिलालेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण सातवी शताब्दी में
देवा के भाई बप्पक ने करवाया था|सभामंड़प की छत पर शिखर नहीं
है या संभवत समय के साथ नष्ट हो गई प्रतीत होती है|सभामंड़प के एक कोने में बाहर
की तरफ अनेक शिवलिंग स्थापित किये हुवे है जो अपने आप में अनोखे प्रतीत होते है| सभामंड़प के मध्य विशालकाय नंदी विराजित है| गर्भग्रह के द्वार अजंता
शैली में बने हुवे प्रतीत होते है| गर्भगृह के मध्य में
शिवलिंग स्थापित है तथा लकुलीश भगवान् की प्रतिमा विराजित है|
परिसर में चन्द्रमौलिश्वर मंदिर के पीछे की तरफ एक
मंदिर है तथा उसके समीप पास पास में दो जुड़वाँ मंदिर है जिसके द्वार के तीनो तरफ
अद्भुत मूर्ति शिल्प है जो भारतीय शिल्प कला का बेमिसाल नमूना है| पास स्थित एक अन्य मंदिर में गणेश भगवान् की खड़ी प्रतिमा रखी हुई है तथा उसके
समीप एक अद्भुत कीर्तिमुख स्थापित है जिसके नीचे शिलालेख अंकित है| मंदिर के बाहर ही एक
प्राचीन शिलालेख लगा हुवा है| पास में एक चबूतरा जिस पर
चार स्तंभों पर टिकी छत है के मध्य में कुछ प्रतिमाये रखी हुई है| मंदिर परिसर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही एक शिवलिंग स्थापित लघु मंदिर
है|
सन 1796 में कोटा राज्य के सेनापति झाला जालिम सिंह
ने चंद्रभागा नदी किनारे बसे इस प्राचीन नगरी से एक किलोमीटर उतर की तरफ झालरापाटन
नगर की स्थापना की जिसके बारे में जनश्रुति है की नगर के निर्माण में प्राचीन
मंदिरों के अवशेषों को प्रयुक्त किया गया था|झालरापाटन की स्थापना के
सम्बन्ध में एक अत्यंत रुचिकर तथ्य ये है की स्थापना के समय नगर के बीचोबीच एक
शिला पर ये राजकीय घोषणा अंकित की गई थी की जो भी व्यक्ति यहाँ आकर बसेगा तो उससे
चुंगी नहीं ली जायेगी तथा यदि उसके विरुद्ध कोई राजकीय अर्थ दंड भी बकाया है तो वो
भी क्षमा कर दिया जाएगा| जिसके कारण हाडौती और मारवाड़ के व्यापारियों ने इस
घोषणा से आकर्षित होकर तेजी से यहाँ बसना प्रारम्भ किया और देखते देखते ये नगर समृद्ध
व्यापारिक नगर में तब्दील हो गया|वर्तमान में ये शिलालेख
झालावाड के संग्रहालय में रखा हुवा है|कुछ इतिहासकारों के मतानुसार
चंद्रभागा नदी का प्रयोग व्यापारिक परिवहन के कार्यो में भी होता था|
झालरापाटन में कार्तिक माह में एक विशाल पशु मेले
का आयोजन होता है जिसमे जिला प्रशासन झालावाड द्वारा पर्यटन विभाग की सहभागिता से
तीन दिवसीय चंद्रभागा मेले का आयोजन किया जाता है| जिसमे हजारो की तादाद में
देशी विदेशी पर्यटक भाग लेते है| मेले में द्वारिकाधीश मंदिर
से चंद्रभागा नदी के तट तक शोभा यात्रा का आयोजन किया जाता है तथा शाम को
झालरापाटन स्थित ग्राउंड में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है|
दोस्तों तो आप कब जा रहे है चंद्रभागा नदी के
किनारे बने इन भारतीय मंदिर स्थापत्य कला के अद्भुत निर्माणों को देखने के लिए ???
अगर आप को इन मंदिरों के इतिहास के बारे में कुछ प्रमाणिक तथ्य ज्ञात हो अथवा तो
अवश्य साझा करे | ...........जय जय .....शरद व्यास ......24.05.18
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