मंडोर (मांडव्यपुर)
जोधपुर नगर से 9
किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित मंडोर नागाद्री नामक छोटी सी पहाड़ी नदी के किनारे
बसा हुवा प्राचीन नगर है|मंडोर को प्राचीनकाल में मांडव्यपुर, मंदोंदरा
अथवा मंडोवर के नाम से भी जाना जाता था ये माना जाता है की इसका ये नामाकरण
मांडव्य ऋषि के नाम पर हुवा है| ऐसा माना जाता है की रामायण कालीन रावण की पत्नी मन्दोदरी का जन्म मंडोर में
ही हुवा था| स्थानीय लोगो की मान्यता है
की यंहा स्थित एक पहाड़ी पर रावण का मन्दोदरी से विवाह हुवा था जिसे रावण की चंवरी
के नाम से जाना जाता है| महादरा गुफा के निकट स्थित एक
गुप्तकालीन अभिलेख से ज्ञात होता है की ये स्थल चोथी शताब्दी में भी विद्यमान था| स्थानीय मान्यताओं के अनुसार मंडोर पर सर्वप्रथम नागाओ ने अधिकार किया था
तदुपरांत क्रमशः प्रतिहार, चाहमान, दिल्ली के सुल्तानों ने इसे अपने अधिकार में
रखा| इसके पश्चात मंडोर पर राठोड़ो का अधिकार हो गया|सन 1909-10 में यंहा किये गए पुरातात्विक उत्खनन में यंहा एक
मंदिर के पास दो एकाश्म स्तंभ प्रकाश में आये थे जिन पर कृष्ण लीलाओं का शिल्पांकन
किया गया है| शैलीगत विन्यास के आधार पर
इन स्तंभों की तिथि 5 वि शताब्दी निर्धारित की जा सकती है|मंडोर के प्रतिहार शासको ने यंहा कई जैन और हिन्दू मंदिरों
का निर्माण करवाया था|छठी शताब्दी में प्रतिहार
शासक राजिल ने मंडोर दुर्ग की प्राचीरो का निर्माण करवाया था| 861 इसवी के घटियाला अभिलेख से ज्ञात होता है की प्रतिहार
शासक कक्कुक ने यंहा एक जैन मंदिर का निर्माण करवाया था|
मडोर पर गुर्जर प्रतिहार शासको ने सर्वाधिक काल तक शासन किया था तथा उनके शासन
काल में मंडोर में अनेक कलात्मक निर्माण कार्य संपादित हुवे होंगे ऐसा प्रतिहारकालीन
निर्माण के अवशेषों को देख कर प्रतीत होता है|12 वी शताब्दी के उपरान्त मंडोर पर संभवत नाडोल के चौहानों
ने अधिकार कर लिया था तथा उसी दौरान इल्तुतमिश, जलालुद्दीन खिलजी और फिरोजशाह
तुगलक जैसे सुल्तानों ने मंडोर पर आक्रमण किया था|कालान्तर में मंडोर पर इन्दा प्रतिहारो ने शासन स्थापित कर
लिया|जिसे बाद में उनके द्वारा राठोड राव चुंडा को दहेज़ में डे
दिया गया|उसके उपरान्त अल्प काल के
लिए मंडोर महाराणा कुम्भा, शेरशाह सूरी और मुग़ल शासक औरंगजेब के अधिकार में रहने
के अलावा राठोड़ो के अधिकार में ही रहा
|
पंद्रहवी शताब्दी में राव जोधाजी ने मंडोर के समीप मेहरानगढ़ दुर्ग की स्थापना
की तथा जोधपुर शहर की नीव रखी| मंडोर लंबे समय तक राठोड़ो का मृतक दाह स्थल रहा है| राठोड शासको की स्मृति में यंहा भव्य देवलो का निर्माण
करवाया गया था| जोधपुर के स्थानीय पत्थर लाल
घाटू से मंदिर शैली में निर्मित ये देवल स्थापत्य की दृष्टि से अद्भुत है|
राहोड़ो द्वारा मंडोर में उधान, जनाना महल, एक थम्बा महल आदि का निर्माण करवाया
गया था| वर्तमान में मंडोर में पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग
द्वारा एक संग्रहालय का संचालन किया जा रहा है|...... (मंडोर में स्थित पुरातत्व विभाग के शिलालेखो तथा डा
मोहन लाल गुप्ता के अनुसार)
शरद व्यास (23.05.18)
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