Saturday, 19 May 2018

Sursagar Palace -Jodhpur - Rajasthan - सूरसागर पैलेस - जोधपुर

Sursagar Palace -Jodhpur - Rajasthan - सूरसागर पैलेस - जोधपुर 

जोधपुरकेसूरसागर क्षेत्र में सूरसागर तालाब के किनारे स्थित इन महलो को समय केसाथ भुलाया जा चूका है।जबकि एक समय में मुग़ल स्थापत्य की शैली में बने ये महलअद्भुत रहे होंगे। सूरसागर चोराहे से थोडा आगे मुख्य मार्ग के बायीं और सूरसागर तालाबके किनारे पर स्थित है ये महल तत्कालीन मारवाड़ और मुग़ल शैली की मिली जुली स्थापत्य कला का नायाब उदाहरण है।
इन महलो का निर्माण सवाई राजा सुर सिंह जी (1595-1619) ने करवाया था जो की अकबर और जहांगीर के समकालीन थे। कहते है की सुर सिंह जी अपने चौबीस वर्ष केशासन काल में मात्र नौ माह ही जोधपुर में रह सके और बाकी सारा समय मुगलो सम्राटो केसूबेदार के रूप में विभिन्न जगहों पर नियुक्त रहे और उनका देहवासन भी 7 सितम्बर 1619 को दक्षिण भारत के महकर में हुआ। अकबर ने उन्हें सवाई की उपाधि दी थी और जहांगीर के समय में उनकी मनसबदारी का दर्जा 5 हजारी जात और 3 हजारी सवार का हो गया था। और उन्हें मारवाड़ के अलावा 5 परगने गुजरात में, 1 परगना मालवा में और 1 परगना दक्षिण में प्रदान किया गया था।
सवाई राज सुर सिंह ने सूरसागर तालाब का निर्माण करवा कर उसके किनारे पहाड़ी परसूरसागर महलो का निर्माण करवाया था। ये महल एक मजबूत परकोटे में घिरे है और परकोटे में प्रवेश द्वार के सम्मुख जनाना महल है उसके सामने मर्दाना महल है और दूसरी दोनों दिशाओ में दो सूंदर से प्रसाद बने हुवे है। इन महलो के ऊपर मुग़ल शैली के गुम्बद बने हुवे है। चारो महलो के सामने की और चार बाग मुग़ल शैली में सुन्दर बाग बनवाये गए थे और मध्य में फुव्वारा था। जो की अब क्षतिग्रस्त हो चुके है।चारो महल पत्थर के ऊँचे चबूतरे पर बने हुवे है और उनके निर्माण में लाल घाटु के पत्थर का प्रयोग किया गया है जिस पर बड़ी सुन्दर नक्काशी की गई है। महलो के एक तरफ सुर सागर तालाब है तो दूसरी तरफ एक खेत है जो की संभवत एक बाग़ ही रहा होगा , जिसमे सुन्दर सी बावड़ी बनी हुई है जिससे पेय जल प्राप्त किया जाता था। महल का एक दरवाजा इसी खेत में बावड़ी केसामने खुलता है। कहा जाता है की इन महलो के चारो तरफ रहने वाले जमीदारो ने भी अपनी अपनी भूमि पर बाग़ बनाये थे और महल के चारो तरफ कुल 84 बाग़ बने हुवे थे।
कहते है की जब 1818 में अंग्रेज सरकार और मारवाड़ राज्य के मध्य संधि हुई तो ब्रिटिश राजदूत को निवास और कार्यालय के लिए यही महल प्रदान किये गए थे।
इन्ही महलो के दोनों और बने प्रासादों में ही मारवाड़ राज्य का पहला डाकखाना खोला गया था। 1909 में जब लार्ड किचनर जब जोधपुर आये थे तब इन्ही महलो में एक संग्रहालय खोला गया था जिसमे विभिन्न कलाकृतिया का प्रदर्शन उनके लिए किया गया था।
1 अक्टूबर 1916 को प्रसिध इतिहासकार प0 विश्वेश्वर नाथ रेऊ ने यहाँ एक पुस्तकालय खोला था जिसमे कई हजार दुर्लभ ग्रन्थ संकलित किये गए थे। बाद में कुछ वर्षो पूर्व तक इन महलो में स्कूल का संचालन होता था।
पूर्व में इस क्षेत्र में जंगली सुअरो की भरमार हुवा करती थी और कहते है की राज परिवार केलोग उनका शिकार करने आते थे और मारे हुवे शिकार की दावतों का आयोजन इन महलो में हुवा करता था।
समय के साथ साथ सूरसागर के महल और बाग़ पूरी तरह से उजड़ चुके है और सुन्दर कलात्मक महल खंडरो में तब्दील हो चुके है। जरुरत है इनको संरक्षित करने की ताकि इस अनुपम धरोहर को आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाया जा सके। जय जय
शरद व्यास , 17-09-16, शनिवार , उदयपुर





























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