Saturday, 9 June 2018

भारतीय लोक कला मंडल, उदयपुर-Bhartiy Lok Kala Mandal - Udaipur


भारतीय लोक कला मंडल, उदयपुर

भारतीय लोक कला मंडल की स्थापना विश्वविख्यात लोक कलाविद, पद्दम श्री स्वर्गीय देवीलाल सामर ने 22 फरवरी 1952 को की थी| लोक कला मंडल की स्थापना का उददेश्य लोककलाओं का संरक्षण, विकास, उत्थान, एवं प्रचार प्रसार करना है|वर्तमान में लोक कला मंडल में लोककलाओं, कठपुतलियो, राजस्थानी लोक नृत्य, लोक वाध. गवरी के पात्र, पड़, कावड कला,मुखोटो, से सम्बंधित अलग अलग कक्ष बने हुवे है जिसमे बड़े अच्छे तरीके से लकड़ी और कांच से बने शोकेसों में नमूनों को प्रदर्शित किया गया है|मुख्य भवन के उपरी तल में आखिरी में एक कठपुतली नृत्य हेतु थियेटर बना हुवा है जिसमे थोड़ी थोड़ी देर बाद पर्यटकों की आवक के अनुसार कठपुतली नृत्य का कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है|पर्यटको अधिक मात्रा में होने पर मुख्य भवन के बाहर एक थियेटर और बना हुवा है|मुख्य भवन के पीछे एक विशाल रंगमंच भी बना हुवा है जिसमे लोक कला मंडल द्वारा प्रतिवर्ष अनेक कार्यक्रमो एवं काबुलीवाला जैसे कठपुतली कार्यक्रमों का मंचन किया जाता है|

लोक कला मंडल द्वारा कठपुतली बनाने वाले हस्तशिल्पियों को भारतीय कठपुतलीयो का प्रचार प्रसार करने, उन्हें बनाने की कला सिखाने तथा विदेशी कठपुतलियो को बनाने की कला सिखने के लिए विदेश भेजा जाता है तथा इसी प्रकार विदेशी कठपुतलियो का नाच दिखाने वाले, कठपुतलियो का निर्माण करने वाले कलाकारो को उदयपुर आमंत्रित किया जाता है|

मुख्य भवन के उपरी तल में थियेटर के समीप ही एक कक्ष में देशी विदेशी कठपुतलियो को प्रदर्शित किया गया है तथा लोक कला मंडल के संस्थापक स्वर्गीय देवी लाल सामर के नाट्यमंचन से सम्बंधित फोटोग्राफस को प्रदर्शित किया गया है साथ ही लोक कला मंडल द्वारा कठपुतली निर्माण से सम्बंधित विषयों पर संपादित तथा प्रकाशित पुस्तकों को भी प्रदर्शित किया गया है|

समीप के कक्ष में राजस्थानी लिक वाध्य यंत्रो को प्रदर्शित किया गया है साथ ही उसे बजाने वाले कुछ प्रमुख राजस्थानी कलाकारों के चित्रों को भी प्रदर्शित किया गया है|भवन की एक गैलेरी पूरी तरह से भील जनजाति के लोक जीवन,संस्कृति, त्योहारों तथा परम्पराओं से सम्बंधित है| तथा दूसरी गैलेरी में अन्य जनजातियों के आभूषण तथा वस्त्र आदि को प्रदशित किया गया है|

लोक कला मंडल के उपरी ताल पर पहुचते ही बंधेज साडी, पिछवाई, बस्सी के बारूद के खेल और फड चित्रकला के नमूनों को तथा ब्लाक प्रिंटिंग के ब्लॉक्स को प्रदर्शित किया गया है|आगे गली में सांझी कला, मांडना कला, छापो, पाग और पगड़ियो को तथा मेहँदी के मांडनो को प्रदर्शित किया गया है| उसके आगे बने तीन कक्षों में फड़ चित्रकला, कावड कला,माताजी के देवरे को तथा बस्सी में लकड़ी से बने विभिन्न मुखोटो,जानवरों के मुखो तथा गवरी के पात्रो को प्रदर्शित किया गया है|

मुख्य भवन के बाहर पर्यटकों के लिए एक सुवेनियर शाप है कक=जिसका उदघाटन श्रीमती जाया बच्चन द्वारा 20 नवम्बर 1993 को किया गया था| तो मित्रो जब भी उदयपुर जाए तो भारतीय लोक कला मंडल देखना न भूले इसे देखने के बाद आपके मन में राजस्थानी लोक कलाओं, संस्कृति से सम्बंधित भूली बिसरी स्मृतिया पुन तरोताजा हो जायेंगी और बच्चो को ले जाना भी उनके लिए शिक्षाप्रद होगा

 .......जय जय ...शरद व्यास ...उदयपुर... 09.06.18   



























    

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