सहेलियों की बाड़ी -ऐसा गार्डन जिससे कई पीढियों की हसीन यादे जुडी है|
दोस्तों जिस तरह ताजमहल से कई सारी पीढियों की ,कई सारे जोड़ो की हसीं यादे जुडी हुई है उसी तरह उदयपुर के सहेलियों की बाड़ी के गार्डन से भी कई सारी पीढियों की हसीन यादे जुडी हुई है| न जाने कितने सारे जोड़ो के हनीमून के खुबसूरत लम्हों की यादो में सहेलियों की बाड़ी का गार्डन है| मैंने तीन तीन पीढियों के फोटोग्राफ्स में सहेलियों की बाड़ी देखी है|
सहेलियों की बाड़ी का निर्माण मेवाड़ के शासक महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय (1710-1734) ने अपनी पुत्री और उसकी सहेलियों और राजपरिवार की महिलाओं के लिए करवाया था| कहते है की महाराणा संग्राम सिंह जी ने इस उधान को बनवाने में स्वयं अत्यधिक रूचि ली थी| बाद में भी कई महाराणाओ ने इसके विकास में रूचि ली थी| महाराणा फ़तेह सिंह जी ने इसमें लीवरपूल इंग्लेंड से फव्वारे मँगवा कर लगवाए थे| और उन्ही के शासन कल में उनकी चावडी रानी के कहने पर हरियाली अमावस्या के मेले में दुसरे दिन केवल महिलाओं का मेला इस उधान में लगने लगा था|
ये उधान फ़तेहसागर तलाब के पास में तथा अपेक्षाकृत नीची भूमि पर स्थित है तथा फ़तेह सागर से उधान तक पानी की भूमिगत पानी की पाइप लाइन बिछाई गयी थी जिसके कारण उस काल में बिना बिजली तथा मोटर के बड़े जबरदस्त तरीके से फव्वारे चला करते थे| उअर आज के मोटर से चलने वाले इन्ही फव्वारों से अपेक्षाकृत ज्यादा तेजी से चला करते थे|
सहेलियों की बाड़ी में प्रमुख चार फव्वारे है| मुख्य फव्वारा बिन बादल बरसात है जिसमे मुख्य फव्वारा एक जल कुंड के मध्य में सफ़ेद मार्बल का छतरीनुमा बना हुवा है जिसमे ऊपर एक कबूतर बना हुवा है| फव्वारे की नक्काशी देखते ही बनती है उसके ऊपर बेल बूटे खोदे गए है| मुख्य फव्वारे के चारो तरफ चार काले पत्थर की छतरीया बनी हुई है जिन पर भी अद्भुत नक्काशी की गई है| पीछे रानियों का महल बना हुवा है| जिसमे कुछ समय पूर्व तक एक विज्ञान से सम्बंधित संग्रहालय बना हुवा था वर्तमान में वहा एन.सी.आर.टी द्वारा कलांगन नामक संग्रहालय बनाया जा रहा है|
मुख्य फव्वारे के दाई और सावन भादों नामक फव्वारा है जो गर्मी के मौसम में भी वर्षा होने का अहसास करवाता है| जब फव्वारे का जल पाम के पत्तो पर गिरता है| पहले यहा शाही महिलाओं के लिए झूले लगाए हुवे थे | सहेलियों की बाड़ी के सभी फव्वारों की सबसे बड़ी खासियत ये है की उस जमाने में इन पत्थर की नक्काशीदार विभिन्न फव्वारों में पानी के पाइप की फिटिंग की हुई है जबकि उस जमाने में किसी भी तरह की आधुनिक मशीनों का अभाव था|
मुख्य भवन के पीछे की तरफ कमल तलाई नामक सुन्दर जल कुंड है जिसके मध्य बड़ा सा फव्वारा लगा हुवा है तथा चारो तरफ चार मार्बल के हाथी लगे हुवे है जिनकी सूंड में से जल निकलता है| कुंड में असंख्य कमल लगे हुवे है | उसके आगे मुख्य भवन के दायी और रास लीला नामक फव्वारा लगा हुवा है जिसमे मुख्य फव्वारे केचारो तरफ लोक नृत्य कलाकार नृत्य किया करते थे तथा सामने भवन के गोखड़ो में से रानिया उन्हें देखा करती थी|
सहेलियों की बाड़ी में ऋतू अनुसार फव्वारे और वृक्षारोपण किया गया था ताकि उधान में वर्षपर्यंत सावन ऋतू का आनंद लिया जा सके|.......शरद व्यास
https://www.youtube.com/watch?v=dvQi6gXZuoE&t=35s
सहेलियों की बाड़ी का निर्माण मेवाड़ के शासक महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय (1710-1734) ने अपनी पुत्री और उसकी सहेलियों और राजपरिवार की महिलाओं के लिए करवाया था| कहते है की महाराणा संग्राम सिंह जी ने इस उधान को बनवाने में स्वयं अत्यधिक रूचि ली थी| बाद में भी कई महाराणाओ ने इसके विकास में रूचि ली थी| महाराणा फ़तेह सिंह जी ने इसमें लीवरपूल इंग्लेंड से फव्वारे मँगवा कर लगवाए थे| और उन्ही के शासन कल में उनकी चावडी रानी के कहने पर हरियाली अमावस्या के मेले में दुसरे दिन केवल महिलाओं का मेला इस उधान में लगने लगा था|
ये उधान फ़तेहसागर तलाब के पास में तथा अपेक्षाकृत नीची भूमि पर स्थित है तथा फ़तेह सागर से उधान तक पानी की भूमिगत पानी की पाइप लाइन बिछाई गयी थी जिसके कारण उस काल में बिना बिजली तथा मोटर के बड़े जबरदस्त तरीके से फव्वारे चला करते थे| उअर आज के मोटर से चलने वाले इन्ही फव्वारों से अपेक्षाकृत ज्यादा तेजी से चला करते थे|
सहेलियों की बाड़ी में प्रमुख चार फव्वारे है| मुख्य फव्वारा बिन बादल बरसात है जिसमे मुख्य फव्वारा एक जल कुंड के मध्य में सफ़ेद मार्बल का छतरीनुमा बना हुवा है जिसमे ऊपर एक कबूतर बना हुवा है| फव्वारे की नक्काशी देखते ही बनती है उसके ऊपर बेल बूटे खोदे गए है| मुख्य फव्वारे के चारो तरफ चार काले पत्थर की छतरीया बनी हुई है जिन पर भी अद्भुत नक्काशी की गई है| पीछे रानियों का महल बना हुवा है| जिसमे कुछ समय पूर्व तक एक विज्ञान से सम्बंधित संग्रहालय बना हुवा था वर्तमान में वहा एन.सी.आर.टी द्वारा कलांगन नामक संग्रहालय बनाया जा रहा है|
मुख्य फव्वारे के दाई और सावन भादों नामक फव्वारा है जो गर्मी के मौसम में भी वर्षा होने का अहसास करवाता है| जब फव्वारे का जल पाम के पत्तो पर गिरता है| पहले यहा शाही महिलाओं के लिए झूले लगाए हुवे थे | सहेलियों की बाड़ी के सभी फव्वारों की सबसे बड़ी खासियत ये है की उस जमाने में इन पत्थर की नक्काशीदार विभिन्न फव्वारों में पानी के पाइप की फिटिंग की हुई है जबकि उस जमाने में किसी भी तरह की आधुनिक मशीनों का अभाव था|
मुख्य भवन के पीछे की तरफ कमल तलाई नामक सुन्दर जल कुंड है जिसके मध्य बड़ा सा फव्वारा लगा हुवा है तथा चारो तरफ चार मार्बल के हाथी लगे हुवे है जिनकी सूंड में से जल निकलता है| कुंड में असंख्य कमल लगे हुवे है | उसके आगे मुख्य भवन के दायी और रास लीला नामक फव्वारा लगा हुवा है जिसमे मुख्य फव्वारे केचारो तरफ लोक नृत्य कलाकार नृत्य किया करते थे तथा सामने भवन के गोखड़ो में से रानिया उन्हें देखा करती थी|
सहेलियों की बाड़ी में ऋतू अनुसार फव्वारे और वृक्षारोपण किया गया था ताकि उधान में वर्षपर्यंत सावन ऋतू का आनंद लिया जा सके|.......शरद व्यास
https://www.youtube.com/watch?v=dvQi6gXZuoE&t=35s
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